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वर्ष पहले जैन तीर्थंकर भगवान महावीर ने अपने ज्ञान द्वारा जनता को समझायी थीं। जैनशास्त्रों में ऐसी कितनी ही बातें हैं जो कि विज्ञान की कसौटी से सिद्ध हो सकती है। हां, इन विषयों को विज्ञान द्वारा देखना चाहिये। जैनशाखों मे 'शब्द' को पौद्गलिक बतलाया है, यही वात आज-तार, टेलीफोन, और फोनोग्राफ के रेकार्डो में उतारे हुए शब्दों से सिद्ध होती है। वात मात्र इतनी ही है कि प्रयत्न करने की आवश्यक्ता है।
२ अजीव-दूसरा तत्त्व अजीव है। चेतना का अत्यन्ताभाव यह अजीव का लक्ष्य है। जड कहो, अचेतन कहो, ये एकार्थवाची शब्द हैं। यह अचेतन-जड़ तत्त्व पांच विभागों में विभक्त है-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलस्तिकाय, और काल-इनकी व्याख्या पहले की गई है।
३-४ पुण्य--पाप-शुभकर्म को पुण्य कहते हैं और अशुभकर्म को पाप कहते है। सम्पत्ति-आरोग्य-रूप-कीतिपुत्र-स्त्री-दीर्घआयुष्य इत्यादि इहलौकिक सुख के साधन तथा स्वर्गादि सुख जिनसे प्राप्त होते है ऐसे शुभकर्मों को पुण्य कहते हैं। और इनसे विपरीत-दुख के साधन प्राप्त कराने . वाले अशुभकर्मों को पाप कहते हैं।
५ आश्रव-आश्रियतेऽनेन कर्म इति आश्रवः । अर्थात् जिस मार्ग द्वारा कर्म आते है उसे आश्व कहते हैं। कर्मोपा