Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 81
________________ [ ६ ] भाट्ट कहते हैं--- वीतरागजन्मादर्शनाद् नित्यनिरतिशयसुखाविर्भावात् मोक्षः । जैन कहते हैं कृत्स्नकर्मक्षयो हि मोक्ष। ___ उपर्युक्त लक्षणों को सूक्ष्मता से अवलोकन करने वाला कोई भी विचारक इस बात को जान सकता है कि सब का ध्येय एक ही है और वह यह है कि इस संसारार्णव से दूर होना-कर्म से मुक्त होना-आत्मा का अपने असली स्वरूप में आ जाना, इस के सिवाय और कुछ नहीं है। इस मुक्ति के उपाय भी जुदा जुदा विद्वानों ने भिन्न भिन्न प्रकार के बतलाए हैं, किन्तु यदि हम इन सब उपायों को अवलोकन करें तो अन्त मे एक ही मार्ग पर सब को आना पड़ता है। संसार मे जो सन्मार्ग हैं वे सर्वदा सब के लिये ही सन्मार्गहैं और जो बुरी वस्तुएँ हैं वे सर्वदा सब के लिये बुरी हैं। आत्मिकविकास के साधनों-वास्तविक साधनों के लिये कोई भी इन्कार नहीं कर सकता। सुप्रसिद्ध महर्षि जैनाचार्य उमास्वाति महाराज ने सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। अर्थात् सम्यग्दर्शन सम्यगज्ञान और सम्यक्चारित्र ही मोक्ष का मार्ग बतलाया है। वस्तुतः इस मार्ग में किसी को भी कुछ आपत्ति नहीं हो सकती।

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