Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 76
________________ [ ६४ ] सात है, इसलिये नारकी के जीवों के भेद भी सात हैं। निर्यच के पांच भेद है-जलचर, खेचर, उरपरिसर्प, भुजपरिसर्प और चतुष्पद। मनुष्य के तीन भेद हैं-कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज, और अंतीपज । देवता के चार भेद हैं-भवनपति, व्यंतर, ज्योतिप्क और वैमानिक। __ इस प्रकार संसारी जीवों के अनेक भेद प्रभेद बताये हैं। जैसे जैसे विज्ञान का विकास होता जाता है वैसे वैसे जीवों की सूक्ष्मता-जीवों की शक्तियां और जीवों की क्रियाएं लोगों के जानने में अधिक आती जाती है। जैनशाखों मे जीवों के सम्बन्ध में बहुत सूक्ष्मता पूर्वक वर्णन किया गया है और वह विज्ञान के साथ मिलान खाता है। जेनशास्त्रों मे जीवों की सूक्ष्मता के लिये जो वर्णन है उसे पढ़कर आज तक लोग अश्रद्धा करत थे, किन्तु जब विज्ञान वेत्ताओं ने थेकसस नामक एक प्रकार के सूक्ष्म जन्तुओं की खोज करके जनता के सामने प्रकट किया जो कि सूई के अग्रभाग पर एक लाख से भी अधिक संख्यामे सरलता पूर्वक बैठ सकते हैं तब लोगों को जैनशास्त्रों में वर्णित जीवों की सूक्ष्मता पर श्रद्धा होने लगी। इसी प्रकार जवसुप्रसिद्ध विज्ञान वेत्ताबोस ( सर जगदीशचन्द्र वसु ) महाशय ने वनस्पति के जीवों में रही हुई शक्तियों को सिद्ध कर वताया, तब लोगों की आंखें खुली। यह बात अवश्य लक्ष्य में लाने योग्य है कि आज जो बातें विज्ञानवेत्ता प्रयोगों द्वारायंत्रों द्वारा प्रत्यक्ष करके बता रहे हैं वे बातें आज से ढाई हज़ार

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