Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 74
________________ ३-२-१ इस क्रम से आते हैं। इन दोनों कालों में चौवीस चौवीस तीर्थकर होते हैं। ___ उपर्युक्त छः प्रकार के द्रव्यों की व्याख्या को द्रव्यानुयोग कहते हैं। जैनशास्रों मे चार अनुयोग वताये गये हैं। १ द्रव्यानुयोग, २ गणितानुयोग, ३ चरणकरणानुयोग, ४ कथानुयोग। द्रव्यानुयोग मे ऊपर कहे अनुसार द्रव्यों की व्याख्यापदार्थो की सिद्धि वतलाई गई है, गणितानुयोग मे ग्रह, नक्षत्र, तारे पृथ्वी के क्षेत्रो वगैरह का वर्णन है, चरणकरणानुयोग मे चारित्र-आचार-विचार आदि का वर्णन है, तथा कथानुयोग मे महापुरुषो के चारित्र वगैरह है। समग्र जैनसाहित्य-जैन आगम-इन चार विभागो मे विभक्त है। इनकी व्याख्या-विवेचन भी आवश्यकीय है, परन्तु निबंध संक्षेप मे ही समाप्त करने के कारण इस विवेचन को छोड़ दिया जाता है और अनुरोध किया जाता है कि उपर्युक्त छ. द्रव्यों वगैरह का विस्तार पूर्वक विवेचन देखने के अभिलापी, सन्मतितर्क, रताकरावतारिका एवं भगवती आदि ग्रंथो को देखें। नवतत्त्व जैनशाखों में नवतत्त्व माने गये हैं। इनके नाम ये हैं:१ जीव, २ अजीव, ३ पुण्य, ४ पाप, ५ आश्रय, ६ संवर, ७ बन्ध, ८ निर्जरा, और ६ मोक्ष ।

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