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[ १४ ] सजनो!
'जैनदर्शन' एक स्वतंत्र दर्शन है। जैनदर्शन मे तत्त्वबान, साहित्य और इतिहास-समृद्ध, सम्पूर्ण और जैनेतर समप्रसाहित्य के अभ्यासियों को भी आकर्षित करने योग्य है। इस सम्बन्ध में एक जर्मन विद्वान डा. हर्मन जेकोवी कहता है कि.
In conclusion let me assert my conviction that Jainism is an original system, quite distinct and independent from all others, and that, therefore it is of great importance for the study of Philosophical thought and religious life in ancient India. (Read in the congress of the History of religion).
उपसंहार में मुझे कहना चाहिये, कि जैनधर्म एक आद्यकालिक दर्शन है, यह अन्य सर्व दर्शनों से सर्वथा भिन्न एवं स्वतंत्र है, और इसलिये यह प्राचीन भारतवर्ष की तात्त्विक विचार धारा तथा धार्मिकजीवन श्रेणी में अध्ययन करने के लिये अत्यन्त उपयोगी है। यह मेरी निश्चित प्रतीति है।
(सर्वधर्मइतिहासपरिषद् मे पढ़े गये निवन्ध में से) एक समय ऐसा था जव कि जैनधर्म के सम्बन्ध मे बड़े बड़े विद्वानों तक मे भी भारी अन्नानता थी। कुछ लोगों की मान्यता थी कि जनधर्म, बुद्धधर्म अथवा ब्राह्मणधर्म की