Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 25
________________ ॥ अहम् ॥ श्रीमद्दयानन्दजन्मशताब्दि मथुरा के महोत्सवपर सर्वधर्मपरिषद् में “जैनदर्शन" पर पढ़ा हुआ निबन्ध सज्जनमहोदयगण तथा बहनो! श्रीमद् दयानन्द जन्मशताब्दि महोत्सव पर जो सर्वधर्मपरिषद् की योजना की गई है, वह अत्यन्त प्रशंसनीय तथा भारतवर्ष के इतिहास में स्मरणीय रहेगी। पूज्यपादस्वर्गस्थशास्त्रविशारद जैनाचार्य श्रीमद् विजयधर्मसूरीश्वरजी महाराज-जिन्होंने अपनी आयु का अमूल्य समय देश देशान्तरों में जैनधर्म का और जैनसाहित्य का विस्तृत प्रचार करने में व्यतीत किया था, उनके पट्टधर इतिहासतत्त्वमहोदधिश्रीमद् आचार्यविजयेन्द्रसूरीजी ने अपने इस निबन्ध को पढ़ने के लिये जैनधर्म के मेरे जैसे अभ्यासी को जो अमूल्य अवसर दिया है, इसके लिये मैं आचार्यश्री का उपकार मानते हुए अपनी आत्मा को धन्य समझता हूँ। इतना कह कर अब मैं आचार्य महाराज का निबन्ध पढ़ता हूँ। [ दोसी फूलचन्द हरिचन्द-महुआ ]

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