Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 42
________________ [ ३० ] युद्ध किये हैं, लडाइयां लड़ी हैं तथा राज्य चलाए हैं। अहिंसा मे जो आत्मशक्ति, जो संयम, जो विश्वप्रेम है वह दूसरी किसी , भी वस्तु मे नहीं हो सकता। अहिंसा सम्बन्धी उपर्युक्त आक्षेप वही लोग करते हैं कि जो जैनदर्शन मे प्रतिपादित साधुधर्म और गृहस्थधर्म को नहीं जान पाये। इन दोनों धर्मों की भिन्नता समझने वाला ऐसा आक्षेप कभी कर ही नहीं सकता। भारत गौरव लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने अपने व्याख्यान में एक जगह कहा है कि "अहिंसा परमो धर्मः इस उदार सिद्धान्त ने ब्राह्मणधर्म पर चिरस्मरणीय छाप मारी है, अर्थात् यज्ञयागादि मे पशुहिंसा होती थी वह आज कल नहीं होती, ब्राह्मणधर्म पर जैनधर्म ने ही यह एक भारी छाप मारी है। घोर हिंसा का कलंक ब्राह्मणधर्म से दूर करने का श्रेय जैनधर्म के हिस्से में ही है। नोर्वेजीयन विद्वान डा० स्टीनकोनो भी कहता है किः___ "आज भी अहिंसा की शक्ति पूर्ण रूप से जागृत है। जहाँ कहीं भी भारतीय विचारों या भारतीय सभ्यता ने प्रवेश किया है, वहां सदैव भारत का यही सन्देश रहा है। यह तो संसार के प्रति भारत का गगन भेदी सन्देश है। मुझे आशा है तथा मेरा यह विश्वास है कि पितृभूमि भारत के भावी भाग्य मे चाहे जो कुछ भी हो, परन्तु भारतवासियों का यह सिद्धान्त सदेव अटल रहेगा।

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