Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ [ ३५ ] के नाम आते हैं, जब कि भागवत जैसे ऐतिहासिक ग्रंथ में ऋषभदेव जैसे जैन तीर्थंकर का - जिनको हुए आज क्रोडों वर्ष माने जाते हैं- उल्लेख पाया जाता है तो यह निःसन्देह बात है कि जैनधर्म अति प्राचीन काल से वेद के समय से भी पहिले का है, इसमें किंचित् भी शंका को स्थान नहीं है । पाश्चात्य विद्वान अधिकतर जैनधर्म को बौद्धधर्म की शाखा मानते थे । परन्तु बौद्धों के पिटक ग्रंथों में महावग्ग और महापरिणिव्वाण आदि मे जैनधर्म और श्रीमहावीर के सम्बन्ध मे प्राप्त हुए उल्लेखों से तथा अन्य भी कई प्रमाणों से सब विद्वानों को स्पष्ट स्वीकार करना पड़ा है कि “जैनधर्म एक प्राचीन और स्वतंत्र धर्म है" । जर्मनी का सुप्रसिद्ध डा० हर्मन जेकोबी स्पष्ट कहता है कि: I have come to conclusion that Jain Religion is extremely ancient religion independent of other faiths. It is of great importance in studying the ancient philosophy and religious doctrines of India. अर्थात्-मैं निर्णय पर आ गया हूं कि “जैनधर्म अत्यन्त प्राचीन और दूसरों से पृथक एक स्वतंत्र धर्म है इसलिये भारतवर्ष का प्राचीन तत्त्वज्ञान और धार्मिकजीवन जानने के लिये यह अत्यन्त उपयोगी है ।"

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85