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भी विद्वान दार्शनिक रहस्यों को जानने के लिये जितना गहरा उतरेगा वह उतना ही उस मे से अपूर्व सार खींच सकेगा और इसके द्वारा भारतवर्ष मे कुछ नया नया प्रकाश डाल सकेगा।
कलकत्ता की फिलासोफिकल सोसायटी ने ऐसी कांग्रेस बुलाने की जो योजना की है इससे भारतवर्ष के विद्वानों को एक दूसरे के दार्शनिकतत्त्व जानने का समय प्राप्त हो सकेगा। इसके लिये इस सोसाइटी को धन्यवाद देकर मैं अपने मूल विषय पर आता हूं।
प्राचीनता
जैनदर्शन भारतवर्ष के छः आस्तिक दर्शनों मे से एक अतिप्राचीन आस्तिक धर्म अथवा दर्शन है। यह बात सत्य है कि जब तक जैनग्रन्थ विद्वानों के हाथों में नहीं आये थे तब तक "जैनधर्म बुद्धधर्म की शाखा है", जैनदर्शन एक नास्तिक दर्शन है", "जैनधर्म अनीश्वर वादी धर्म है", इत्यादि-नाना प्रकार की कल्पनाएं लोगों ने की, परन्तु इधर कुछ वर्षों से जैसे जैसे जैनसाहित्य लोगों के हाथों मे आता गया, जैनधर्म के गम्भीर तत्त्व लोगों को ज्ञात होने लगे तथा इतिहास की कसौटी में जैनधर्म की प्राचीनता के अनेक प्रमाण मिलने लगे, वैसे वैसे विद्वान लोग अपने मत का परिवर्तन करने लगे। जैनधर्म को अर्वाचीन मानने वालों ने जब यह देखा कि "वेद" जैसे प्राचीन से प्राचीन महामान्य ग्रन्थों में भी जैन तीर्थकरों