Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 45
________________ इंडियन फिलॉसोफिकल कॉमे स कलकत्ता के अधिवेशन इतिहासतत्त्वमहोदधि ___ आचार्य श्री विजयेन्द्र खूरि जी महाराज का M जैनतत्त्वज्ञान पर निबन्ध। उपक्रम भारतवर्ष का प्राचीन से प्राचीन इतिहास भी इस बात का प्रतिपादन करता है कि इस देश में ऐसे उच्च कोटि के तत्वज्ञ पुरुष थे जिनकी तुलना शायद ही कोई दूसरा देश कर सके। भारतवर्ष के दर्शनों मे इतना गंभीर रहस्य समाया हुआ है कि जिनका तलस्पर्श करने मे आज कोई भी विद्वान सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। हतभाग्य भारतवर्ष आज दूसरे देशों के तत्त्वज्ञों का मुह ताक रहा है तथा हम हर समय, वात बात मे इतरदेशों के तत्त्वज्ञों के प्रमाण देने को तैयार रहते हैं। मेरे नम्र मतानुसार हमे अभी भारतवर्ष के दर्शनों पर बहुत कुछ विचार करना बाकी है। मेरी तो यह धारणा है कि जो कोई

Loading...

Page Navigation
1 ... 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85