Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 41
________________ [ २ ] था । गुजरात के इतिहास का मूल जैनइतिहास में है । यदि ऐसा कहे तो अनुचित न होगा कि जैनों ने ही गुजरात के इतिहास की रक्षा की है। अनेक प्राचीन शिलालेखों, पट्टकों, मूर्तियों, ग्रंथों, सिक्कों और तीर्थस्थानों में जैनइतिहास के स्मरण मिल आते है । जैन राजा खारवेल की गुफाएँ, आबू पर के मंदिरों की कलामय चित्रकला, शत्रुजयपर्वत के मंदिर जैनों के स्थापत्य शिल्पकला के संबन्ध मे श्रेष्ठता के प्रमाण उपस्थित कर रहे हैं । जैन राजा और मंत्री भी अनेक हो गये हैं । संप्रति, श्रेणिक, कूणिक, कुमारपाल, आदि राजा तथा वस्तुपाल, तेजःपाल, भामाशाह, मुजाल, चापाशाह इत्यादि जैसे कुशल राज्य प्रबंधक मंत्री आज भी जैन इतिहास के रंग मंडप अपूर्व भाग ले रहे हैं । अहिंसा । "अहिंसा" यह जैनधर्म का जगत को अद्भुत सन्देश है । जगत के सब धर्मों में "अहिंसा" के लिये अवश्य कुछ न कुछ उल्लेख है सही परन्तु जैनधर्म ने जो अहिंसाधर्म बताया है वैसा दूसरे धर्मो में नहीं है । किन्हीं भारतीय विद्वानों का आक्षेप है कि अहिंसाधर्म ने भारतवर्ष की वीरता का नाश किया है । यह अहिंसा लोगों मे शूर वीरता के बदले कायरता, भीरुता ही लाई है इत्यादि । परन्तु मैं तो यह कहता हूं कि यह बात सत्य नहीं है । अहिंसाधर्म का पालन करने वालों ने

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