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आर्यशब्द से मेरा अभिप्राय किसी समाज अथवा संप्रदाय से नहीं है किन्तु हेयधर्मों को छोड़ कर जो कोई भी सद्गुणों - सत्कर्मों को स्वीकार करे वही आर्य कहला सकता है । वह किसी भी समाज, सम्प्रदाय या जाति में क्यों न हो, उसको सज्जन लोग आर्य ही मानते हैं ।
संसार के सभी मनुष्य सद्गुणों और सत्कर्मों को प्राप्त करें एवं अपना उद्धार करें - यह मेरी हार्दिक अभिलापा है । इतना कह कर मैं अपना भाषण समाप्त करता हूँ ।
आप सब ने सावधानता पूर्वक मेरा भाषण सुना है, इसलिये मैं आपको धन्यवाद देता हूँ ।
ॐ शान्ति शान्ति सुशान्तिः
ता० २४-१२-२३
धर्म सं० २
श्रीविजयेन्द्रसूरि
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