Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ [ २२ ] हो जाय तव तक इस जीव को जन्म-जरा-मरणादि के दुःख भोगने पड़ते है। मोक्ष के साधन । जैनदर्शन सम्यग्दर्शन (Right belief) सम्यग्ज्ञान ( Right knowledge) तथा सम्यक्चारित्र ( Right charactor) इस त्रिपुटी को मोक्ष का साधन मानता है। इस त्रिपुटी को रत्न त्रय भी कहते हैं। तत्वार्थसत्र के प्रथम अध्याय के प्रथम सूत्र मे-सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः दिया गया है। यही मोक्ष का मार्ग है। जैनदर्शन आत्मा को नित्य मानता है तथा जैनशास्त्र की मान्यता है कि कर्मों का क्षय कर अखंड आनन्द-मोक्ष सुख प्राप्त करने वाली आत्माएं पुनः अवतार (जन्म) नहीं लेती। यद्यपि तीर्थंकरों के जन्म से यह वात सिद्ध होती है कि-जब जव जगत मे अनाचार और दुख बढ़ जाते हैं, तव तव महान् आत्माएं अवश्य जन्म लेती हैं और जगत को सन्मार्ग बताती हैं तथापि इस बात का ध्यान रहे कि मुक्त आत्माएं जिनको संसार मे वापिस आने का कोई कारण ही नहीं है वे संसार मे फिर से जन्म नहीं लेती, परन्तु इन के सिवाय चार गति मे भ्रमण करने वाली आत्माओं मे से ही ऐसे महान् पुरुषों का जन्म होता है। श्रीगीता जी का कर्मयोग-यह जैन परिभाषा में पुरुषार्थ है। जैनदर्शन कर्मवादी होने का उपदेश नहीं देता,

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85