Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 32
________________ २० ] रूप साल्म होता है-अखंड ब्रह्माड के समय पदार्थ इन दो तत्त्वों में ही आ जाते हैं। जिसमे चैतन्य नहीं है-अनुभव करने की शक्ति नहीं है, वह जड़ है। तथा इससे विपरीत लक्षण वाला चैतन्य स्वरूप आत्मा है। आत्मा मे ही अनुभव करने की शक्ति है, इसे जीव भी कहते हैं। ज्ञानशक्ति यह आत्मा का मुख्य लक्षण है। चेतनालक्षणो जीवः। ___ जैनतत्त्वज्ञान यहां तक आगे बढ़ा है कि पृथ्वी को, जल को, अग्नि को, वायु को और वनस्पति को जीवमय मानता है। जीवों के मुख्य स और स्थावर इस प्रकार दो भेद है। स्थावर के दो भेद हैं सूक्ष्म और वादर। वर्तमाण विज्ञानिकों की भी मान्यता है कि तमाम पोलापन (आकाश) सूक्ष्म जीवो से भरा पड़ा है, इनकी मान्यतानुसार सव से छोटा थेकसस नामक प्राणी है जो कि एक सूई के अग्रभाग पर एक लाख सरलता पूर्वक बैठ सकते है। प्रसिद्ध विनानवेत्ता प्रोफेसर जगदीशचन्द्र बोस ने वनस्पति के पौधो पर प्रयोग कर के यह सिद्ध कर दिया है कि वनस्पति के पौधों में क्रोध, लोभ, ईर्पा आदि संज्ञाएँ भी होती है और जीव भी होता है। यह बात जैनदर्शन ने हजारों वर्ष पहले वताई है। जब कि किसी भी प्रकार के

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