Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 38
________________ [ २६ ] दृष्टि से दर्शन शात्रों को अवलोकन करनेवाले भली भांति समझ सकते हैं कि प्रत्येक दर्शनकार को एक अथवा दूसरे । प्रकार से स्याद्वाद को स्वीकार करना ही पड़ता है। समयाभाव के कारण मात्र संक्षेप में ही प्रत्येक विषय की रूप रेखा आप लोगों के सामने उपस्थित करता हूं। जैनसाहित्य। अव जैनसाहित्य सम्वन्धी जरा दृष्टिपात करें। जैन साहित्य विपुल, विस्तीर्ण और समृद्ध हैं। कोई भी ऐसा विषय नहीं मिलेगा कि जिस पर रचे हुए अनेक ग्रंथ जैन साहित्य में न मिले, मात्र इतना ही नहीं परन्तु इन विषयों की चर्चा बहुत उत्तमता के साथ विद्वता पूर्ण दृष्टि से की गई है। जैनदर्शन में प्रधान ४५ शास्त्र है जो कि सिद्धान्त अथवा आगम के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनमे ११ अंग, १२ उपाग, ६ छेद, ४ मूलसूत्र, १० पयन्ना, तथा २ अवातर सूत्र आते हैं। प्राचीन समय मे शास्त्र लिखने-लिखाने का रिवाज नहीं था। साधु लोग परम्परा से आये हुए ज्ञान को कंठान रखते थे। जैसे जैसे समय व्यतीत होता गया वैसे वैसे इसे पुस्तकारूढ़ करने की आवश्यकता प्रतीत हुई। आगमों मे जो बोध है वह महावीरस्वामी के जीवन, कथन तथा उपदेश का सार है। यह सारा जैनसाहित्य द्रव्यानुयोग, गणितानुयोग, ६ छेद, तर सूत्र मे शास्त्र

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