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( 10 ) संप्रदाय, अमुक समाज अथवा अमुक देशवासी ही आर्यत्व प्राप्त कर सकते है या आर्य हैं ऐसी संकुचित और अनुचित व्याख्या जैनदृष्टि को मान्य नहीं है “परन्तु त्यागने योग्य जो हो उसे त्याग कर ग्रहण करने योग्य सनणों को स्वीकार करना ही आर्यत्व है"। यह व्याख्या स्पष्ट कर रही है कि सद्गणों को ग्रहण करने वाला और दुर्गुणों का त्याग करने वाला प्रत्येक व्यक्ति आर्य है।
दूसरे निवन्ध मे महाराजश्री ने इतिहास, तत्त्वज्ञान, ईश्वर, स्याद्वाद, आदि विषय संक्षेप मे वतलाये हैं। परस्पर की गल्तफ़हमी को दूर करना, एक दूसरे के यथार्थ परिचय को प्राप्त करना इस धर्म के नाम पर होने वाले क्लेशों-झगडों पर ठण्डाजल डाल कर जलती आग को शात करने के समान पुण्य कार्य है।
तीसरे निवन्ध के लिये ऐसा कह सकते हैं कि यह एक प्रकार से दूसरे व्याख्यान के अनुसंधान मे ही है। दूसरे व्याख्यान मे जो कुछ अपूर्ण लगता है वह इस निवन्ध मे पूर्ण किया गया है। ___ जैनधर्म के प्रचार के लिये सव भापाओं मे ऐसे छोटे छोटे निवन्ध लिखने चाहिये। इतिहासतत्त्वमहोदधि आचार्यश्री विजयेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज जो कि विश्वसाहित्य का अच्छा परिचय रखते हैं तथा जिनकी सलाह और सूचनाएं अनेक पाश्चात्यपंडितों को मार्गदर्शक होती है-यदि चाहे तो इतिहास, साहित्य और तत्त्वज्ञान के विपय मे बहुत नवीन प्रकाश डाल सकते हैं।