Book Title: Jagat aur Jain Darshan
Author(s): Vijayendrasuri, Hiralal Duggad
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 11
________________ ( ० ) प्रस्तुत तीनों निवन्ध लिखकर तथा जनसाधारण के सामने व्याख्यान द्वारा सुना कर आचार्यश्री ने जिनशासन की जो सेवा की है वह वास्तविक मे प्रशसनीय और अनुकरणीय है। हमारी धारणा तो यह है कि ऐसे निवन्ध ही जैनधर्म के प्रति फैली हुई भ्रांतियों का नाश कर जैनधर्म के उत्तम और पवित्र सिद्धातों का जनता मे प्रचार कर इसके प्रति श्रद्धा और भक्ति उत्पन्न करने को समर्थ हो सकते है। इसलिये जिनशासन की उन्नति चाहने वाले प्रत्येक विद्वान को चाहे वह मुनि हो या श्रावक चाहिये कि जैनदर्शन के गूढ एव गम्भीर तत्त्वज्ञान, इतिहास आदि का तुलनात्मकशैली से सरल भाषा मे निवन्धों और व्याख्यानों द्वारा प्रचार करे । _ये निबन्ध जनसाधारण के लिये अति उपयोगी हैं और इनसे हिन्दी जानने वाले महानुभाव भी लाभ उठा सकें इस विचार से हमने इनका हिन्दी भाषा मे अनुवाद कराया है। आशा है कि हिन्दी भापाभाषी महानुभाव इन निबन्धों को पढ़कर हमारे परिश्रम को सफल बनावेंगे। अक्षयतृतीया १९६७ धर्म संवत् १८ भावनगर प्रकाशक

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