Book Title: Gyanankusham Author(s): Yogindudev, Purnachandra Jain, Rushabhchand Jain Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal View full book textPage 5
________________ ******* ज्ञानांकुशम् ******** 'योगसार और योगप्रदीप जैसे अनेकों मूल्यवान ग्रन्थ ध्यान की गहराइयों को सुस्पष्ट करते हैं। ध्यानसूत्राणि ग्रन्थ के माध्यम से परमोपकारी आचार्य श्री माघनन्दि देव ने ध्यान का प्रायोगिक अभ्यास करवाया है। इस कृति का नाम ज्ञानांकुश स्तोत्रम् है। जैसे मदमस्त गजराज को वश करने के लिए लोहांकुश चाहिये, उसीप्रकार सद्गुणों के उपवन ' को उजाड़ने वाले मनरूपी मत्त हाथी को वश करने के लिए ज्ञानांकुश चाहिये। इस कृति का प्रणयन आत्मतत्त्ववेत्ता योगीन्द्रदेवाचार्य ने किया है। इस ग्रन्थ में मात्र चवालीस कारिकाएँ है। ग्रन्थ अत्यन्त सरल एवं सुबोध है। संस्कृत भाषा का सामान्य ज्ञाता भी इसे आसानी से समझ सकता है। यथा देहं चैत्यालयं प्राहुर्देही चैत्यं तथोच्यते । तद् भक्तिश्चैत्यभक्तिश्च प्रशस्या भववर्जिता । | २२ || अर्थात् देह चैत्यालय है और देही चैत्य है। उसकी भक्ति चैत्यभक्ति है। 'वह भक्ति ही प्रशंसनीय एवं भवपार कराने वाली है। " ऐसे सरल ग्रन्थ का मुनिश्री के पावन करकमलों से 'अनुवाद हो जाने के कारण विषय और भी सरस एवं सुन्दर हो गया है। मैं अपना सौभाग्य समझता हूँ कि ऐसे विषय को प्रकाशित करने के लिए मुझे अपना सहयोग करने का अवसर प्राप्त हुआ है। इस ग्रन्थ को पढ़कर एक भी आत्मा आत्मत्त्व को उपलब्ध हो जाय, तो हमारा श्रम सार्थक हो जायेगा । परम पूज्य आर्यिका श्री सुविधिमती माताजी तथा परम पूज्य आर्यिका श्री सुयोगमती माताजी ने इस ग्रंथ की पाण्डुलिपि को तैयार करके प्रकाशन के योग्य बनाया है। उनके इस श्रुतप्रेम की मैं अनुमोदना करता हूँ तथा मैं उन्हें सादर वन्दामि भी करता हूँ। इस ग्रन्थ के प्रकाशन में अनेकों महानुभावों ने अतिशय उत्साह पूर्वक सहयोग प्रदान किया है, उन सभी के प्रति मैं अनेकान्त श्रुत प्रकाशिनी संस्था की ओर से आभार व्यक्त करता हूँ। आशा है, आप इस ग्रन्थ का पूर्ण लाभ उठायेंगे। आइये, ध्यानयोग में आप सादर आमन्त्रित हैं। **** - भरतकुमार पापड़ीवाल *************Page Navigation
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