Book Title: Gyan Shabdakosh
Author(s): Gyanmandal Limited
Publisher: Gyanmandal Limited

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंशुक-अकलंक -मान्-पु० मूर्य, चंद्रमा; मूर्यवंशी राजा सगरका पौत्र । | चुका हो। वि० अंशुयुक्त प्रभायुक्त। -माली (लिन)-पु० सूर्य । अकबक-स्त्री० अंडबंड बातें; प्रलाप; सुधबुध; चिंता, अंशुक-पु० [सं०] वस्त्र; मूक्ष्म वस्त्र, बारीक कपड़ा; रेशमी खटका । वि० चकित, निस्तब्ध । कपड़ा; उपरना; दुपट्टा । अकबकाना-अ० क्रि० भौचक्का होना; घबराना। अंस-पु० [सं०] अंश; कंधा। अकबर-वि० [अ०] बहुत बड़ा, महत्तर एक मुगल सम्राट् । अंसल-वि० [सं०] मजबूत कंधोंवाला; तगड़ा। अकबरी-वि० [अ०] अकबरका चलाया हुआ, अकबरअंसु*-पु० भाग; कंधा; आँसू । संबंधी। स्त्री० एक मिठाई; लकड़ीपरकी एक तरहकी असुआ, असुवा-पु० दे० 'आँसू' । नक्काशी। असुआना-अ० क्रि० आँसू भर आना। अकबाल-पु० दे० 'इकबाल' । अंह (सु)-पु० [सं०] पाप; चिंता; कष्ट । अकर-वि० [सं०] बिना हाथकाः बिना महमूलका, करसे अंहि-पु० [सं०] चरण; वृक्षमूल । -प-पु० वृक्ष । मुक्त; दुष्करः निष्क्रिय, जो कार्य न कर रहा हो। अ-अ० (उप०) [सं०] यह व्यंजनादि संशा और विशेषण अकरकरा-पु० दवाके काम आनेवाला एक पौधा । शब्दोंके पहले लगाकर सादृश्य (अब्राह्मण ), भेद (अपट), अकरखना *-स० क्रि० आकृष्ट करना, खींचना, तानना। अल्पता ( अनुदश), अभाव ( अरूप, अकाम), विरोध अकरण-वि० [सं०] इंद्रिय-रहितः देह, इंद्रियादिसे रहित (अनीति, असुर ) और अप्राशस्त्य ( अकाल, अकार्य )के (परमात्मा ); अकृत्रिम, स्वाभाविक । पु० कुछ न करना, अर्थ प्रकट करता है। स्वरसे आरंभ होनेवाले शब्दोंके कर्मका अभाव । *वि० अकारण, कारणरहित; जिसका पहले आने पर इसका रूप'अन्' हो जाता है। पु० विष्णु; करना अनुचित या कठिन हो। शिव; ब्रह्मा; वायुः वैश्वानरः विश्व; अमृत । अकरणीय-वि [सं०] न करने योग्य । अइला-पु० मुंह छेद । अकरन *-वि० अकारण; अकरणीय । अउ, अउरी-अ० और, तथा । अकरनीय *-वि० दे० 'अकरणीय' । अऊत -वि० निपूता, निस्संतान । अकरा *-वि० बहुमूल्य खरा, चोखा । अऊलना-अ० क्रि० तप्त होना, जलना गरभी पड़नाः | अकराथ *-वि० व्यर्थ, निष्प्रयोजन । चुभना; छिलना। अकराल-वि० [सं०] जो भयंकर न हो, सुंदर, सौम्य । अऋण, अऋणी (णिन् )-वि० [सं०] जो ऋणी या *वि० भयानक । कर्जदार न हो; ऋणमुक्त । अकरास-पु० सुस्ती, आलस्य; अंगड़ाई । अएरना-स० कि० अंगीकार करना; ग्रहण करना। अकरी-स्त्री० हलमें लगा हुआ चोंगा जिससे बीज अकंटक-वि० [सं०] बिना काँटेका; निर्विधन; शत्रुरहित । गिराते है। अकच-वि० [सं०] केशरहित, गंजा । पु० केतु ग्रह । अकरण-वि० [सं०] करुणारहित, निठुर । अकठोर-वि० [सं०] जो कठोर न हो; कमजोर । अकर्कश-वि० [सं०] कर्कशतारहित, नरम, मृदु । अकड़-स्त्री० अकड़नेका भाव, ढिठाई; कड़ापन, तनाव | अकर्ण-वि० [सं०] जिसके कान छोटे हों; कर्णहीन, बहरा; ऐंठ; घमंड; हठ; स्वाभिमान । -बाई-स्त्री० एक रोग जिसमें पतवार न हो । पु० सॉप । जिममें नमें तन जाती हैं । -बाज़-वि० अकड़कर अकर्तव्य-वि० [सं०] न करने योग्य, अविहित,अनुचित । चलनेवाला, घमंडी। -बाज़ी-स्त्री० ऐंठ, घमंड । पु० अनुचित कर्म । अकड़ना-अ० क्रि० सूखकर कड़ा होना; ठिठुरना; तनना, । अकर्ता (र्तृ)-वि० [सं०] जो कर्ता न हो, कर्म न ऐंठना; धमंड करना; स्तब्ध होना; तनना, तनकर करनेवाला, कर्मसे अलिप्त ( पुरुष )। चलना जिद करना धृष्टता करना; रुष्ट होना। | अकर्तृक-वि० [सं०] जिसका कोई कर्ता न हो। अकड़ाव-पु० अकड़नेकी क्रिया, तनाव, ऐंटन । अकर्तृत्व-पु० [सं०] कर्तृत्व, कर्तापनके अभिमानका अकड़त-वि० दे० 'अकड़बाज । अभाव। अकत्थ-वि० दे० 'अकत्थ्य। अकर्म (न्)-पु० [सं०] कर्मका अभाव, निष्क्रियता; अकथ*-वि० दे० 'अकत्थ्य' । बुरा काम ।-शील-वि० सुस्त, आलसी । अकथनीय-वि० [सं०] दे॰ 'अकत्थ्य'। अकर्मक-वि० [सं०] ( वह क्रिया) जिसके लिए कर्मकी अकथित-वि० [सं०] जो न कहा गया हो, अनुक्ता गौण अपेक्षा न हो ( व्या०)। (कर्म-व्या०) अकर्मण्य-वि० [सं०] कर्मके अयोग्य निकम्मा; आलसी; अकथ्य-वि० [सं०] जो कहा न जा सके, कथनके अयोग्य, __ न करने योग्य । अकथनीय । अकर्मा (मन)-वि० [सं०] कर्मरहित, जो कुछ करता अकधक *-पु० आगापीछा; आशंका । न हो; निकम्मा संस्कार आदिका अनधिकारी। अकनना-स० क्रि० कान लगाकर सुनना; सुनना; अकर्मी (र्मिन्)-वि० [सं०] दुष्कर्म करनेवाला, पापी । आहट लेना या पाना। अकर्षण-पु० [सं०] कर्षण या खिंचावका न होना । अकना-अ० क्रि० घबड़ाना। *पु० आकर्षण, खिंचाव । अकन्या-स्त्री० [सं०] वह कन्या जिसका कौमार्य नष्ट हो अकलंक-वि० [सं०] कलंकरहित, निर्दोष बेदाग । For Private and Personal Use Only

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