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अशुद्ध स्वभावोऽप्रति
-न्थीऽयेध्य
प्रतिकेना
-चुण्णिइ
शुद्ध
स्वभावः । अप्रति
• न्थीयेऽध्य
प्रतीकेना
-चुणी इ
Jain Educational
पंक्ति
६
पत्र.
१९२-२
१३
१९४-१
६ २०४-१ ८ २०८-२
पत्रम् ७३ पृष्ठम् २ पंक्तिः ५ इत्थं ज्ञेया- “यत्तं उद्दिसित्तए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति नो अहिजिज्जा एवं से नो कप्पइ आयरियउवज्झायत्तं उद्दिसित्तए "त्ति, गतार्थमेतत्" इत्यादि ॥
पत्र १३९ पृष्ठ २ पंक्तिः २ इत्थं वाच्या- “तर, नो से कप्पइ गणावच्छे अस्स गणावच्छेइअत्तं अनिक्खिवित्ता अण्ण गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, कप्पइ से गणावच्छेइअस्स गणाछेत्तं णिक्खिवित्ता ०" इत्यादि ||
पत्रम् - १४७ पृष्ठम् २ पंक्तिः ८ इत्थं वाचनीया - "उवज्झायं उद्दिसावित्तए, कप्पइ से आपुच्छित्ता जाव उद्दिसावित्तए, ते असे वितरंति एवं से कप्पइ जाव उद्दिसावित्तए, ते अ से णो वितरंति एवं से णो कप्पइ जाव उद्दिसावित्तए, णो से कप्पइ तेसिं कारणं अदी वित्ता०" इत्यादि ॥
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