Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 17
________________ आभिजात्य का फूल ... 143 कृष्ण ने कहा : मैं वृक्षों में पीपल हूँ / पीपल कई अर्थों में अनूठा है / पीपल रात में भी कार्बन डाइ-आक्साइड नहीं छोड़ता / चौबीस घंटे उससे जीवन निःसृत / चेतना और बुद्धि को बढ़ाने वाला रसायन–सर्वाधिक मात्रा में पीपल में उपलब्ध / बुद्ध को संबोधि घटित-पीपल वृक्ष के नीचे / पशुओं और वृक्षों में भी बुद्धि और स्मृति होती है / बोधि-वृक्ष अब भी सुरक्षित है / संबोधि की घटना की स्मृति संजोए / पौधों की भाव-संवेदनाओं पर वैज्ञानिक प्रयोग / पौधे सुखी-दुखी, उदास-प्रसन्न / परस्पर भी संवेदनशील / पौधों की संवेदना कई अर्थों में आदमी से भी शुद्ध / झूठी मुस्कुराहटें-झूठे चेहरे / महावीर की परम संवेदना-पौधों और अन्य प्राणियों के प्रति / पीपल में सर्वाधिक प्रतिभा और प्रज्ञा प्रकट / पीपल की पूजा, पीपल को नमस्कार / प्रज्ञा कहीं भी हो नमस्कार के योग्य है / प्रज्ञावान व्यक्ति के सामने सिर झुकाने में अहंकार को अड़चन / जीवित बुद्धों से बचना-मूर्तियों को पूजना / कृष्णमूर्ति में अहंकारियों की रुचि / शिष्यत्व से, झुकने से बचने वाले लोग / कृष्णमूर्ति की बातों से अहंकारियों का पोषण लेना / हमारी यह सदी सबसे ज्यादा अहंकारग्रस्त / आदमी को आखिरी सत्य मानने पर विकास का कोई उपाय न रहेगा / हिंदुओं ने झुकने के सभी अवसरों का उपयोग किया / यूनानी वैद्य लुकमान की वनस्पतियों से बातचीत / कायसी का बेहोशी में औषधियों के नाम बताना / वनस्पतियों से अंतर्संबंध / अस्तित्व में गहरे उतरने के लिए स्वयं में गहरे उतरना जरूरी / कृष्ण ने कहा : देवर्षियों में मैं नारद हूं / नारद-लीला, उत्सव और गैरगंभीरता के प्रतीक / गंभीरता रोग है / कृष्ण अपने को गंभीर ऋषियों से नहीं जोड़ते / उपयोगी और साफ-सुथरे को चुनने वाले / मुल्ला नसरुद्दीन-एक सूफी संत / जीवन को एक • खेल, एक नाटक समझना / गंभीर आदमी अधार्मिक है / ईसाइयों का यह कहना गलत है कि जीसस कभी हंसे नहीं / उदास लोगों की धर्म में उत्सुकता रुग्ण है / धर्म का जन्म विराट आनंद से / उदास लोगों द्वारा संगठन का निर्माण / गंभीर परिग्रह-गंभीर त्याग / जीवन एक अभिनय है—तो चुनाव की जरूरत न रहेगी / कृष्ण पर्णावतार हैं-अमर्यादित / राम अंशावतार हैं / परे कृष्ण को स्वीकार करना-हिम्मत का काम/सूरदास के बाल कृष्ण केशव के यवा कृष्ण / गांधी महाभारत युद्ध को प्रतीकात्मक मानते हैं / हिंसा से बचने की तरकीब / गांधीः नब्बे प्रतिशत जैन और दस प्रतिशत हिंदू हैं / गांधी के तीन गुरु-राजचंद्र, रस्किन और टाल्सटाय / कृष्ण हैं-असंगत, गैरगंभीर / सिद्धों में मैं कपिल मुनि हूं / जगत में दो निष्ठाएं हैं—सांख्य और योग/ कपिल सांख्य-निष्ठा वाले सिद्ध हैं / योग का अर्थ है : क्रमिक विकास, अभ्यास, साधना / सांख्य की निष्ठा है कि कोई अभ्यास नहीं सिर्फ पुनमरण चाहिए / भेड़ों के बीच पले सिंह की गर्जनाः बोध-कथा / भूलने की दुर्घटना / करने की आदत / अगति, अक्रिया, विश्राम / बुद्ध की कठिन साधनाएं / योग की समाप्ति-सांख्य का उदय / योग भी एक तनाव है / आभिजात्य का फूल-परमात्मा की झलक / कृष्ण के लिए कुछ भी छोटा नहीं है / कहां-कहां मैं खिल गया हूं / सभी तलों पर आभिजात्य प्रकट / रमण महर्षि का नियमित सत्संग करने वाली गाय / बीज और फूल / फूल में पहचानना सरल। 11 काम का राम में रूपांतरण ... 159 कृष्ण ने कहाः जीवन की उत्पत्ति का कारण कामदेव मैं ही हं / काम को भस्म करने के लिए पहले प्रगाढ़ कामवासना चाहिए / समस्त सृजन काम-ऊर्जा निष्पन्न / ऊर्जा का अधोगमन काम है और ऊर्ध्वगमन-आत्मा / जननेंद्रिय के मार्ग से शक्ति प्रकृति में लीन / वही शक्ति सहस्रार से परमात्मा में लीन / आग का उपयोग जीवन के लिए या विनाश के लिए / हमारा परिचय-केवल काम के अधोगामी रूप से ही / दूसरे की ओर बहती ऊर्जा-परतंत्रता का मूल आधार / वासना पर-निर्भरता है / निर्भरता पीडादायी है / विपरीत से पलायन नहीं-स्वयं पर वापसी / बहिर्गमन ऊर्जा का बिखराव है / अंतर्गमन ऊर्जा का इकट्ठा होना है / अपना ही सृजन / बहिर्गमन संसार है / फ्रायड द्वारा प्रस्तावित निदान सही-लेकिन उपचार गलत /

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