Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 15
________________ होना जन्मगत बातें नहीं हैं / धर्म भावगत है-जन्मगत नहीं / व्यक्ति के दो मुख्य प्रकार-मस्तिष्क-केंद्रित और भाव-केंद्रित / विचार शुद्ध होते-होते शून्य हो जाना—ध्यान-ज्ञान-मार्ग / निर्विचार बोध मात्र शेष / हृदय का मार्ग है—भाव, लीनता, समर्पण, विसर्जन / सूफी फकीरों का गोल घूमना / घूमता शरीर-ठहरी चेतना / नृत्य और संगीत से लीनता में प्रवेश / मैं खो जाए-सब बचे / या सब खो जाए–केवल मैं बचे / गूंगे का गुड़ / एक कवि द्वारा सूर्योदय का सौंदर्य पेटी में बंद करके अपनी प्रेयसी को भेजना / दिव्य विभूतियां कहने में नहीं होने में प्रकट / कृष्णमूर्ति के श्रोताः समझ लिया; कुछ हुआ नहीं / मंदिर, मस्जिद, चर्च-जो छू जाए / मन आदतों का जोड़ है / चूकने की आदत / मानने से जानने तक यात्रा। शास्त्र इशारे हैं ...95 बुद्धपुरुषों के वचन प्रीतिकर हैं, लेकिन प्यास को बढ़ाते हैं / मरते बुद्ध, रोता आनंद : जलस्रोत की खोज / धर्मशास्त्र-जो प्यास दे, जलन दे, अतृप्ति को जगाए / दिव्य-संतोष की एक लपट / परमात्मा के लिए प्यासा–संसार के प्रति संतुष्ट / समस्त प्राण एक ही आयाम में प्रवाहित / अर्जुन स्वयं कृष्ण हो जाए, तो तृप्ति / विस्तार और व्याख्या से समझ का कोई संबंध नहीं है / विस्तार नहीं गहराई जरूरी / विस्तार में भटकनाः गहराई में डूबना / सुकरात की बुढ़ापे में घोषणा : मैं कुछ भी नहीं जानता / संत की सरलता और निर्दोषता / ज्ञान संग्रह नहीं है / संगृहीत ज्ञान बाधा है / गहरा जानने के लिए स्वयं गहरा होना पड़ता है / धन का अहंकार; पांडित्य का अहंकार / समझः जानकारी से नहीं रूपांतरण से / बार-बार पढ़ने पर भी धर्म-ग्रंथ ऊब नहीं लाते / यांत्रिक रूप से गीता कंठस्थ कर लेना / बुद्ध का संन्यास-ऊब और व्यर्थता के बोध से फलित / बुद्ध को दुखों से परिचित न होने देना / अमरीकी सर्वाधिक ऊबा हुआ-संपन्नता के कारण/मुल्ला-सम्राट-और भिंडी की सब्जी/ऊब का अतिक्रमण-ध्यान से / सुख-दुख से ऊब-आनंद से ऊब नहीं / ईश्वर की महिमा अनंत है / कृष्ण कुछ चुने हुए लक्षण कहते हैं / नक्शा इशारा है-यात्रा पर निकलने के लिए / अर्जुन के अनुकूल लक्षण बताना / बुद्धपुरुषों के वचन–श्रोता के अनुकूल / मोहम्मद की देशनाएं–तत्कालीन स्थिति के योग्य / सबके हृदय में स्थित आत्मा हूं / दूसरों के मंतव्यों से अपनी पहचान बनाना / शरीर को भीतर से देखने का ध्यान / शरीर से राग टूट जाए, तो केंद्र की और गति / आत्मा का नाम हृदय है / ब्रह्मयोगी के प्रयोगः दस मिनट हृदय की धड़कन बंद करना / शरीर मरता है; केंद्र की कोई मृत्यु नहीं / जहां-जहां जीवन, वहां-वहां परमात्मा / शरीर ही अलग हैं—आत्मा तो एक है / बाहर है भेद-भीतर अभेद है / बल्ब अलग-अलग हैं–बिजली एक है / सब में वही एक है / कोई पराया नहीं तो प्रेम और करुणा का जन्म / सब का प्रारंभ, मध्य और अंत मैं ही हूं / भारत की अनूठी दृष्टिः सब परमात्मा है—बुराई भी, अंधकार भी, विनाश भी / सर्व स्वीकार का साहस / शैतान का आविष्कार-ताकि पाप को, बुराई को परमात्मा न मानना पड़े / बुराई को भी होने के लिए परमात्मा के सहारे की जरूरत / हिंदू-चिंतन अलग से शैतान का कोई अस्तित्व नहीं मानता / बुराई और भलाई-एक ही चीज के विस्तार / अस्तित्व और परमात्मा पर्यायवाची हैं / भलाई-बुराई : विपरीत का द्वंद्व / द्वंद्वातीत परमात्मा। सगुण प्रतीक-सृजनात्मकता, प्रकाश, संगीत और बोध के ... 111 अज्ञात ईश्वर के प्रति कुछ इशारे-ज्ञात प्रतीकों द्वारा / चित्रों की भाषा / ग गणेश का—ग गधे का / हिंदुओं के प्रतीक-ब्रह्मा, विष्णु, महेश / सृजन, संरक्षण, विनाश / तीन मौलिक शक्तियां / त्रिमूर्ति-ट्रिनिटी / विज्ञान की त्रिमूर्ति-इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान / कृष्ण ने कहाः मैं विष्णुहूं / हिंदुओं के सारे अवतार विष्णु के अवतार हैं / जीवन है मध्य में / जीवन विष्णु का फैलाव है / ब्रह्मा के मंदिर नहीं के बराबर / किरणों में सूर्य हूं / ब्रह्मांड

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