Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 14
________________ फोड़ने के पहले विद्यार्थी को चपत लगाना / शिक्षित व्यक्ति की मुसीबतों के नए आयाम / ज्यादा शिक्षा-ज्यादा दुख / बुद्धि-बुद्धिमत्ता का धोखा है / बुद्धियोग का आलोक / मनुष्य बीज है-प्रकाश का / संसार है-अज्ञान में देखा गया परमात्मा / परमात्मा है-जाग कर देखा गया संसार / द्वैत का भ्रम / सांप में रस्सी देखना / सांप और रस्सी के बीच क्या संबंध है / मौलिक भ्रम पर खड़े दर्शन-शास्त्र / धर्म एक अंतीति है / शास्त्र-ज्ञान से ज्ञान का भ्रम / कंडीशंड रिफ्लेक्स का सिद्धांत / उधार धर्म संस्कारित करना / यांत्रिक संस्कारों से मुक्ति जरूरी। 15 कृष्ण की भगवत्ता और डांवाडोल अर्जुन ... 63 किसी व्यक्ति को भगवान मानने में अहंकार को बड़ी कठिनाई / कृष्ण को बुद्धि से समझना असंभव है / गीता समाप्त हो जाए, यदि अर्जुन कृष्ण को पहचान ले / उधार सत्य को गवाही की जरूरत / ऋषि-मुनियों की गवाही / कृष्ण स्वयं प्रमाण हैं / जैनियों ने कृष्ण को सातवें नर्क में डाल रखा है | कृष्ण ने अर्जुन से महायुद्ध करवाया / गवाह जुटाने का अर्थः भीतर संदेह है / बड़े संदेह के लिए बड़ी गवाही की जरूरत / ईश्वर प्रमाणः रामकृष्ण-विवेकानंद संवाद / मानना नहीं जानना / जानने से रूपांतरण घटित / भीड़ के साथ होने में अहंकार को सुविधा / सन् 1917 के बाद पूरे रूस का आस्तिक से नास्तिक हो जाना / श्रेष्ठतम सपना और हलुवे का बटवारा ः बोध-कथा / मन का आधार-द्वंद्व / न्यायाधीश मुल्लाः यह भी सच, वह भी सच / मन में विपरीत सदा मौजूद / संदेह और श्रद्धा के बीच डोलता हुआ अर्जुन / अर्जुन के पास क्षत्रिय का मजबूत अहंकार है / कृष्ण की आभा और अनुकंपा अर्जुन को छूती है / कमजोर आस्था वाले मतांध होते हैं / बुद्ध की प्रतिमा का मुख काला हो जानाः एक जपानी बोध-कथा / अन्य दृष्टिकोणों से बचाना / कैसे तय हो-क्या सच, क्या झूठ: मुल्ला नसरुद्दीन / निष्प्राण श्रद्धा / शिरडी के साईं बाबा : विविध रूपों में एक भक्त के पास जाना / भगवत्ता को पहचानने के लिए व्यक्ति का भीतर अखंडित होना जरूरी / विज्ञान एक श्रृंखला है—एक परंपरा / धर्म निजी व्यक्तिगत अनुभव है / अर्जुन कृष्ण को सीधा नहीं देख पा रहा है / सभी तर्क काटे जा सकते हैं / तर्क से ईश्वर का कोई संबंध नहीं है / कृष्ण हैं-भगवत्ता की साकार प्रतिमा / अर्जुन है-डांवाडोल मन का प्रतिनिधि / अर्जुन को पर्त-पर्त उघाड़ना / गीता एक जीवंत संवाद है। स्वभाव की पहचान ...77 अर्जुन सरल व्यक्तित्व है / स्वयं के प्रति ईमानदार और प्रामाणिक होना / अपनी जटिलता को भुलाना या छिपाना नहीं चाहता अर्जुन / कृष्ण अपने से ही अपने को जानते हैं / गहन अंधेरे में भी स्वयं के होने का बोध स्पष्ट / तीन शिष्यों की परीक्षा : कबूतर मार कर ले आओ, जब कोई न देखता हो / हसन यह न कर सका / चेतना स्व-प्रकाशित है / द्रष्टा आत्मा का विज्ञान निर्मित नहीं हो सकता / द्रष्टा को दृश्य की तरह नहीं देखा जा सकता / परमात्मा होकर ही परमात्मा जाना जा सकता है / निकटता में भी दूरी शेष है / परिचय और ज्ञान का फर्क / प्रेमियों के बीच भी दूरी / सभी प्रेम असफल हो जाते हैं / ज्ञान के लिए एकाकार हो जाना जरूरी / अनेक दीयों का जलना : रोशनी एक / मानना और जानना-इस का स्पष्ट भेद होना चाहिए / बुद्धपुरुष हमें झकझोरते हैं, चेताते हैं / जो श्रद्धा टूट जाए, वह श्रद्धा नहीं है / विकास पीछे नहीं लौटता / मृत्यु-क्षण की झूठी धार्मिकता / अर्जुन मानने से जानने की यात्रा पर जाने को आतुर है / कृष्ण की दिव्य विभूतियों को जानने में असमर्थ, असहाय अर्जुन / कृष्ण ही अनुकंपा करें, तो संभव / प्रेम के मार्ग पर परमात्मा का सगुण रूप / ज्ञानमार्ग में परमात्मा-निराकार, निर्विकार और निर्गुण / भक्तिमार्गी और ज्ञानमार्गी के बीच का विवाद / इस्लाम का मूर्ति-विरोध / ईश्वरानुभूति को व्यक्त करने के अलग-अलग ढंग / शास्त्रीय तालमेल बिठालने की व्यर्थ कोशिश / विराट ईश्वर-सीमित अभिव्यक्ति / अपना-अपना भाव पहचानना जरूरी / स्वयं के स्वभाव का अज्ञान-एक विडंबना / दूसरों पर अपनी पसंद आरोपित करना / हिंद, मुसलमान, ईसाई

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