Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 12
________________ अनुक्रम गीता-दर्शन अध्याय 10 अज्ञेय जीवन-रहस्य ...1 रहस्य जीवन का स्वभाव है / ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय / सत्य वचन, असत्य वचन और परम वचन / सत्य और असत्य के पार है-परम वचन / ईश्वर है? -जांच-परख-प्रमाण! / आस्तिकता-नास्तिकता-व्यर्थ विवाद / ए.जे.ऐयर द्वारा परम वचनों को व्यर्थ वचन कहना / अंधे को प्रकाश के प्रमाण देना असंभव / भीतर की आंख / विज्ञान . बाह्य को बदलता है और धर्म-अंतस को / बोध-कथाः नदी का भय-मरुस्थल में खोने का / श्रद्धा का प्रारंभ-बिंदु । रूपांतरण-अनुभव-प्रमाण / परम वचन-जो शाश्वतरूप से सत्य हैं / सत्य को कहने और सुनने के लिए गहन आत्मीयता जरूरी / गुरु पूरब की देन है / गुरु और शिक्षक का फर्क / अर्जुन कृष्ण के प्रति अतिशय प्रेम से भरा / प्रेम में मध्य नहीं होता / अतिशय प्रेम में विचार बंद-और समर्पण घटित / सत्य की कसौटी—जिससे आनंद फलित हो / बुद्ध का होना ही ईश्वर का प्रमाण है / नीत्से की नास्तिकता : परिणति-पागलपन / सभी सत्य हितकारी नहीं हैं / जगत के मूल आधार का ज्ञान संभव नहीं/ बूंद सागर को जाने भी तो कैसे / अज्ञेय में जानने वाले का खो जाना / ईश्वरीय वचन-जब अस्तित्व ही बोलता है / रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजर कर ही अर्थ स्पष्ट / सूफी-ग्रंथ-ध्यान की सात सीढ़ियां-सात अर्थ / परमात्मा है-सब का आदि कारण और अजन्मा / ईश्वर स्रष्टा नहीं; ईश्वर अस्तित्व है / अस्तित्व का न प्रारंभ है, न अंत / जीवन एक लीला है, खेल है / अज्ञान में जो होता है—वह पाप / ज्ञान में जो होता है वह पुण्य / अर्जुन के हित के लिए कृष्ण का बोलना / मनोविश्लेषणः बकवास सुनने का व्यवसाय / अस्तित्व की विराटता के बोध से क्षुद्र पर पकड़ का छूट जाना। 2 रूपांतरण का आधार-निष्कंप चित्त और जागरूकता ... 17 सब परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है / केवल खंड को ही देखने का हमारा ढंग/अर्जुन-खंडित दृष्टि का प्रतीक / कृष्ण-अखंडित दृष्टि के प्रतीक / कृष्ण गिनाते हैं कि मैं कहां-कहां हूं / द्वंद्व, कलह, खंडित होना मन का स्वभाव है। अखंड मन शून्य हो जाता है / मन के खंडों का दल बदलते रहना / पूर्ण निश्चय-मन की समाप्ति / बंगाल का एक भक्त; जीवन में एक बार राम का नाम लेना / ध्यान अर्थात निष्कंप चेतना / निष्कंप क्षण में निश्चय घटित / गुरजिएफ की स्टॉप एक्सरसाइज / फिलॉसफी है मानसिक चिंतन / तत्वज्ञान है—जीवंत अनुभव / सोचना अनुभव नहीं है / पंडित की भूल / शब्दों का सम्मोहन / मौन का दर्पण / भीतर-सपनों की सतत धारा / मूढ़ता अर्थात सोए-सोए जीना / सपनों की धारा को तोड़ना कठिन है / ड्राइवरों का खुली आंख सो जाना / योगी नींद में भी जागा हुआ / भोगी-जागरण में भी सोया हुआ / झेन फकीर बोकोजू : ऊंचे वृक्ष पर चढ़ने का ध्यान-प्रयोग / जागने की संभावना खतरे के क्षणों में /

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