Book Title: Gita Darshan Part 05
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 13
________________ मृत्यु-बोध में सपनों का टूटना / क्षमा अर्थात क्रोध का अभाव / बुद्ध को गालियां : क्रोध का अभाव / क्रोध की अंतर्धारा / अकारण क्रोध / सूली पर चढ़े जीसस का क्षमा-भाव / निंदक नियरे राखिए / जो क्रोध दिलवाएं उनका धन्यवाद / दमन से मन का बलशाली होना / दमन नहीं समझ सूत्र है | ऊर्जा का ज्ञान-ऊर्जा का रूपांतरण / क्रोध ऊर्जा है / क्रोध में रासायनिक मूर्छा घटित / क्रोध पर ध्यान / गुरजिएफ के दादा की शिक्षाः चौबीस घंटे बाद जवाब देना / क्रोध, काम आदि पर ध्यान करने से मनोनिग्रह फलित / द्वंद्वों के स्वीकार और साक्षित्व से अतिक्रमण फलित / समस्त जाग्रत पुरुषों में एक परमात्मा प्रकट। 3 ईश्वर अर्थात ऐश्वर्य ... 33 ईश्वर अर्थात अभिव्यक्त ऐश्वर्य / जीवन रहस्य की अभिव्यक्तियों में ईश्वर अनुभूति सरलता से / परमात्मा की परम अभिव्यक्ति–बुद्ध, जीसस, सुकरात, मंसूर / हमारा दुर्व्यवहार / अहंकार को पीड़ा / पूजा और हत्या / जीवित बुद्धपुरुष को भगवान मानना कठिन है / ऐश्वर्य के सभी रूप परमात्मा के रूप हैं / क्षुद्र में परमात्मा को पहचानना कठिन है / दोस्तोवस्की की कहानी : जीसस की वापसी : पुनः सूली लगने की स्थिति / मंसूर द्वारा परम ऐश्वर्य की घोषणा / श्रेष्ठ से अहंकार को बेचैनी / निकृष्ट से राहत और सांत्वना / श्रेष्ठ को स्वीकार करें / परमात्मा क्षुद्र से जुड़ता है—अपनी योगशक्ति से / परमात्मा भी तुम्हें खोज रहा है / सागर का आमंत्रण बूंद को / बूंद की क्या सामर्थ्य कि सागर को खोज सके / परमात्मा तो मौजूद है-हमारी आंखें बंद हैं / हीरा जेब में पड़ा है और हम भीख मांग रहे हैं / मानना नहीं जानना / मरते हुए मौन संन्यासी का अंतिम वचन–तत्वमसि-तुम वही हो / संवेदनशीलता को जगाने के प्रयोग / समुद्र तट पर रेत के विभिन्न स्पर्श / उपन्यास के पात्र सिद्धार्थ का नदी से सत्संग / सभी दिशाओं से जीवन का संस्पर्श / बुद्धि उधार हो सकती है—संवेदना नहीं / संवेदनाएं स्वयं जीनी पड़ती हैं / खुला हुआ हृदय / निश्चल-ध्यान-योग / रुको-और पा लो / संसार के लिए दौड़ो; परमात्मा के लिए रुको / धार्मिक व्यस्तताएं / दौड़ ही दूरी है / मौन सीखना / दौड़ समाप्त होते ही परमात्मा से एकीभाव / भाव की सतत धारा / भाव है शब्दरहित बोध। ध्यान की छाया है समर्पण ... 47 निरंतर दौड़ता मन–अतीत में, भविष्य में / वर्तमान के क्षण में मन नहीं होता / दौड़ता हुआ मन रोग है / दौड़ते हुए मन वाला व्यक्ति अधार्मिक है । निश्चल-ध्यान-योग-मन को रोकने की एक विधि / अंडे का टूटना जरूरी / मन जरूरी है-एक सीमा तक / ध्यान है-मन का टूटना, मन का ठहरना / मां के गर्भ में बच्चे की स्थिति / मन अल्पतम-जब चेतना नाभि पर / चेतना को मस्तिष्क से हृदय पर और हृदय से नाभि पर उतारना / गर्भासन में शरीर और श्वास का शिथिल होना और सिर का आगे झुक जाना / व्यक्ति अस्तित्व से जुड़ा है-नाभि के द्वार से / बाइबिल का वचन: बच्चे जैसा हो जाना : ध्यान की एक विधि / मन के तल पर की गई गीता की हजार टीकाएं / मन अनेकः ध्यान एक / मन समाप्त हो-तब परमात्मा में लगता है / नानक की नमाज-नवाब के साथ : बोध कथा / मन खो जाए, तो परमात्मा ही परमात्मा / ध्यान के बाद का सहज समर्पण / हमारी भाषाएं अहंकार-केंद्रित हैं / समर्पण होता है—किया नहीं जाता / समर्पण ध्यान की छाया है / एकीभाव के बाद पूरी जीवन-चर्या प्रभुमय / बुद्ध की कठोर तपश्चर्या से आकर्षित पांच भिक्षु / त्याग का त्याग है महात्याग / तुम्हारा होना ही दूसरों को प्रभु की याद दिलाए। धर्म परिवर्तन-अहंकार का कृत्य। हिंदुओं ने दूसरों को हिंदू बनाने का प्रयास नहीं किया / इस्लाम और ईसाइयत से प्रभावित स्वामी दयानंद / दूसरों को बदलने की चेष्टा में हिंसा है / सहज आनंद से निकली प्रभु-चर्चा / समाधि से बुद्धिमत्ता का जन्म / तथाकथित बुद्धिः उलटा प्रतिबिंब मात्र / मुल्ला का सवार होना-उलटे गधे पर / घड़ा

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