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गौतम रास : परिशीलन
शीघ्र चलो, सर्वज्ञ महावोर को वन्दन करने महसेन वन शीघ्र चलो।" इन्द्रभूति को विश्वास नहीं हुआ। अपने बटुकों/ छात्रों को भेजकर जानकारी करवाई तो ज्ञात हुआ"भगवान महावीर केवलज्ञानो/सर्वज्ञ बनकर अपापा नगरी के बाहर महसेन वन में आये हैं। देव-निर्मित अलौकिक समवसरण में बठकर धर्मदेशना दे रहे हैं। उन्हीं का नमन करने एवं उनका देशना सुनने नगर निवासा झुण्ड के झुण्ड बनाकर वहाँ पहुंच रहे हैं । समस्त देवगण भा समवसरण में सवज्ञ महावार का अनुचरा का भाति सेवा कर रहे हैं ।” सुनते ही आहत सप की तरह गवाहत हाकर इन्द्रभूति हुकार करते हुए गरजने लगे । क्राधावश के कारण उनका मुख लालचाल हो गया। अाँखा से मानों ज्वालाएँ निकलन लगी। हाथ-पर कापने लगे । व बुदबुदा उठ
कौन सर्वज्ञ है ? कौन ज्ञानी है ? विश्व में मेरे अतिरिक्त न कोई सर्वज्ञ है और न काई ज्ञानी । देश के सारे ज्ञानियों/ विद्वाना को ता मैंने शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया था, कोई शेष नहीं बचा था। फिर यह नया सर्वज्ञ कहाँ से पैदा हा गया ! यह महावार नाम भो मैंने पहले कभी नहीं सुना था। अरे ! हाँ, याद आया, उस बटुक ने कहा था-"ज्ञातवशीय महावार अलोकिक शक्ति के भो धारक हैं।" हं ! तो यह क्षात्रय है ! ब्राह्मणों से विद्या प्राप्त करने वाला और विप्रों के चरण-स्पश करने वाला क्षत्रिय सर्वज्ञ बन बैठा है ! धाखा है । यह सवज्ञ नहीं, इन्द्रजालो प्रतीत होता है। इन्द्रजाल | सम्मोहिनो विद्या से इसने सब को बवकूफ बना रखा है । शेर को खाल ओढकर यह सियार अपनो माया जाल से सब को
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