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गौतम रास : परिशीलन
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शीघ्रता से वन्दन करने लगे और पन्द्रह सौ केवलो केवलज्ञानियों की परिषद् की ओर जाने लगे। उनको केवलिपरिषद् में जाते देखकर गौतम स्वामी ने टोका । उस समय जगद्गुरु महावीर ने कहा-गोतम ! केवलियों को पाशातना मत करो।
"अाज के दीक्षित भी केवलो बन गए और मैं अभी तक कैवल्य-लाभ से वंचित रहा” इस विचार सरणि से वे व्यथित हो गए और स्वयं को प्रात्म-निन्दा करने लगे । गीतम को उद्विग्न देखकर अन्तिम तोर्थपति महावीर ने पुनः कहाहे गोतम ! खेद मत करो। अन्त में मैं और तुम अर्थात् दोनों एक समान हो जायेंगे, एक ही स्वरूप को प्राप्त कर लेंगे अर्थात् मुक्ति में दोनों समान हो जायेंगे ।।३१।।
पद्यांक ७ अौर १६ की तरह यहाँ भी चारुसेना नामक रड्डा छन्द है।
__ कार्तिकी अमावस्या के दिन पावापुरी में प्रभु का निवाण हुया । देवमुख से संवाद सुनते हो गौतम को अत्यन्त मानसिक मार्मिक विषाद हुमा । वे विलाप करने लगे । विचार शृखला बदलने पर उन्हें कैवल्य की प्राप्ति हुई। कवि उक्त वर्णन का पद्यांक ३२ से ३६ तक में मार्मिक पद्धति से प्रस्तुत कर रहा
सामियो ए वीर जिणिद, पूनम चन्द जिम उल्लसिय, विहरियो ए भरह वासम्मि, वरस बहुत्तर संवसिय । ठवतो ए कणय-पउमेण, पाय-कमल संघे सहिय, आवियो ए नयणानन्द, नयर पावापुरि सुरमहिय ॥३२॥
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