________________
१२४
गौतम रास : परिशीलन
प्रभु महावीर की उक्त वाणी "अन्त में हम दोनों समान होंगे" सुनकर गौतम स्वामी का मानसिक खेद दूर हुआ और उनका मुख-कमल पूर्णिमा के चन्द्र के समान खिल उठा।
अथवा श्रमण भगवान् महावीर जो भव्यजनों के मानस को पूर्ण चन्द्र के समान विकसित करने वाले हैं, जिन्होंने अपनी आयु के ७२ वर्ष भरत क्षेत्र में व्यतीत किये हैं, जो देवेन्द्रों से पूजित/अचित हैं, जो नयनों को प्रानन्द देने वाले हैं, वे स्वर्णकमलों पर अपने चरण-कमलों को रखकर विचरण करते हुए (अपना सान्ध्य काल निकट जानकर) पावापुरी नगरी में पधारे ॥३२॥
३२ से ३६ तक के पद्य २८ मात्रा के उल्लाला छन्द के हैं, १४-१४ पर यति है ।
पेखियउ ए गोयम सामि, देवसमा पडिबोह करइ, प्रापणु ए तिसला देवी, नन्दन पहुतउ परम पए। वलतउ ए देव प्राकास, पेखवि जाणिउ जिण समि ए, तउ मुनि ए मन विखवाद, नाद भेद जिम उप्पनउ ए ॥३३॥
निर्वाण रात्रि के पूर्व दिवस हो प्रभु ने गौतम का रागबन्ध-विच्छेद करने हेतु उनको देवशर्मा को प्रतिबोध देने के लिये निकटस्थ ग्राम में जाने का निर्देश दिया। गौतम स्वामी वहाँ गये और देवशर्मा को प्रतिबोध देकर वह रात्रि वहीं धर्मजागरण में व्यतीत की। और, इधर इसी रात्रि में त्रिशलादेवी के नन्दन और हमारे आराध्य देव भगवान् महावीर ने जन्मजरा-मरण के बन्धनों से सर्वदा के लिये मुक्त होकर परमोच्च सिद्ध पद को प्राप्त किया।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org