Book Title: Gautam Ras Parishilan
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 148
________________ १२८ गौतम रास : परिशीलन बार वरस तिहुश्रण नमंसिय।। राजगिहि नयरो ठव्यउ, बाणवइ वरिसाऊ । सामी गोयम गुणनिलउ, होसइ सिवपुर ठाऊ ॥३७॥ कवि इस पद्य में गौतम स्वामी की पूर्णायु का लेखाजोखा प्रस्तुत करते हुए कहता है :-- प्रभु महावीर के प्रथम गणधर गौतम गौत्रीय इन्द्रभूति ५० वर्ष तक गृह-जीवन/गृहस्थावस्था में रहे । ३० वर्ष तक संयम की साधना में रत रहे। १२ वर्ष तक विश्ववन्द्य बनकर केवलज्ञानी की अवस्था में विचरण करते रहे। इस प्रकार ५०+ ३० + १२ = ६२ वर्ष की आयु पूर्ण कर राजगृह नगरी में रहते हुए मुक्ति नगरी पधार गए, जाएंगे ।।३७।। चारुसेना नामक रड्डा-वस्तु छन्द है। भारतीय समाज में जो स्थान अनिष्टहारी मंगलकारी हितकारी के रूप में गणपति गणेश जी का है, वही स्थान जैन परम्परा में गौतम स्वामी का है। वे अनन्तलब्धि सम्पन्न, विघ्नोच्छेदक एवं कल्याणकारी के रूप में माने जाते हैं । प्रातः काल में इनके पवित्र नाम का स्मरण अत्यन्त सिद्धिदायक माना गया है । इसीलिये कवि पद्यांक ३८ से ४७ तक में उनकी अतिशय महिमा का वर्णन करते हुए कहता है : जिम सहकारइ कोयल दहकइ, जिम कुसुमवनइ परिमल महकइ, जिम चन्दन सोगन्ध निधि । जिम गंगाजल लहाँ लहकइ, जिम कणयाचल तेजइ झलकइ, तिम गोयम सोभाग निधि ॥३८॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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