Book Title: Gautam Ras Parishilan
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 133
________________ गौतम रास : परिशीलन ११३ पद्यांक १७ से २१ तक के पाँचों पद्य चार चरणात्मक २७ मात्रा वाले मात्रिक छन्द हैं । १४, १३ पर यति है । छन्द का नाम शोध की अपेक्षा रखता है । मणिमय तोरण दण्ड-ध्वज, कोसीसइ नव घाटतउ, वैर-विवजित जंतु गण प्रातिहारज आठ तउ । सुर नर किन्नर असुर वर, इन्द्र इन्द्राणी राय तउ, चित्त चमक्किय चितवइ ए, सेवंता प्रभु पाय तउ ॥१८॥ इन्द्रभूति देखते हैं: -समवसरण का तोरण द्वार मणिरत्नों से निर्मित है । इन्द्र ध्वज लहरा रहा है। समवसरण के कपिशीर्षक (कांगुरे) चतुर शिल्पियों द्वारा निर्मित एवं रत्न खचित हैं । पशु एवं पक्षियों के समूह स्वकीय जातिगत वैर को छोड़कर सौहार्द भाव से मिलकर बैठे हुए हैं । आठों प्रातिहार्यों/अतिशयात्मक वस्तुओं-अशोक वृक्ष, पुष्पवृष्टि, दिव्य ध्वनि, चामर युगल, सिंहासन, भामण्डल, देव-दुन्दुभि, छत्र-से वे प्रभु सुशोभित हैं। सुर, असुर, किन्नर, मानव, इन्द्र-इन्द्राणियाँ, राजागण प्रभु के चरण-कमलों की उपासना। सेवाभक्ति कर रहे हैं । उक्त दृश्यों को देखकर इन्द्रभूति का मानस चमत्कृत/झंकृत हो जाता है ।।१।। सहस-किरण-सम वीर जिण, पेखि रूव विसालतउ, एह असंभव संभवे ए, सांचउ ए इन्द्रजाल तउ । तउ बोलावइ त्रिजग-गुरु, इंदभूइ नामेण तउ, सिरिमुख संसय सामि सवे, फेडइ वेद पएण तउ ॥१६॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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