Book Title: Gautam Ras Parishilan
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 134
________________ ११४ गौतम रास : परिशीलन हजार किरणों वाले सूर्य के समान वीर विभु के देदीप्यमान एवं विशाल रूप-राशि को देखकर इन्द्रभूति विचार करते हैं कि, जो असम्भव है, कल्पनातीत है, अवर्णनीय है वह भी प्रत्यक्ष में दृष्टिगत हो रहा है। अतः यह निश्चित है कि यह असाधारण व्यक्तित्वधारी प्रभु न होकर कोई ऐन्द्रजालिक है और अपनी इन्द्रजाल विद्या से सब को सम्मोहित कर, मूर्ख बना रहा है। जिस समय इन्द्रभूति का मानस उद्भ्रान्त सा होकर सोच-विचार में तल्लीन था उसी समय तीनों लोकों के गुरु | स्वामी ने अपनी अमृत सम गिरा में कहा:--"भो इन्द्रभूति ! आओ' । तदनन्तर वीर विभु ने इन्द्रभूति के हृदय में शल्यवत् जो संदेह था कि “जीव है या नहीं' प्रमाण भूत वेद की ऋचाओं को उद्धृत कर उस संशय-शल्य को जड़मूल से उखाड़ फेंका, अर्थात् संशय का निराकरण कर दिया ॥१६॥ मान मेलि मद ठेलि करि, भगतिहि नम्यउ सीस तउ, पंचसयासु व्रत लियो ए, गोयम पहिलउ सीस तउ । बंधव संजम सुरिणवि करि, अगनिभूइ आवेय तउ, नाम लइ आभास करइ, ते पण प्रतिबोधेय तउ ॥२०॥ सन्देह छिन्न होने पर, मन में संकल्पित प्रतिज्ञा के अनुसार कि- "यदि यह वस्तुतः सर्वज्ञ है और मेरी मनस्थित शंका का स्वत: ही समाधान कर देता है, तो मैं इसका शिष्यत्व स्वीकार कर लूंगा"-तत्क्षण ही इन्द्रभूति ने अहंकार का परित्याग कर, मद को तिलांजलि देकर, भक्ति-श्रद्धा पूर्वक सिर झुकाकर महावीर को सादर नमन किया और अपने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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