Book Title: Gautam Ras Parishilan
Author(s): Vinaysagar
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 136
________________ ११६ गौतम रास : परिशीलन के साथ ही उन्होंने सर्वज्ञ का शिष्यत्व अंगीकार कर लिया, अर्थात् प्रभु महावीर के ही बन गये । प्रभु ने अनुक्रम से ११ याज्ञिकों को संयम व्रत प्रदान कर, अपना शिष्य बनाकर सभी को गणधर पद पर स्थापित किया और अपने शासन/संघ की स्थापना की। दीक्षानन्तर इन्द्रभूति ने यावज्जीवन दो-दो उपवास के अन्त में पारणक करने की प्रतिज्ञा ग्रहण की। इस प्रकार उत्कट तपस्या और उत्कृष्टतम संयम का पालन करते हुए अप्रमत्त दशा में भूमण्डल पर विचरण करने लगे। इनके प्रशस्ततम गुणों को देखकर सारा जगत् इन्द्रभूति/गौतम गणधर की जय-जयकार करने लगा ।।२१।। (इंदभूइ) इन्दभूइ चढियो बहुमान, हंकारउ करि संचरिउ, समवसरण पहुतउ तुरंतु, जइ-जइ संसय सामी, सवि चरमनाह फेडइ फुरंतु । बोधिबीज संजाय मनइं, गोयल भवह विरत्तु । दिक्खा लइ सिक्खा सहिय, गणहर पय संपत्तु ॥२२॥ इस पद्य में पद्यांक १७ से २१ तक का सारांश वर्णित है । इन्द्रभूति अत्यन्त दर्प में आकर हुंकारता गर्जता हुआ चला और तत्क्षण ही प्रभु के समवसरण में पहुँच गया। उसके मन में जो-जो भी संशय थे, उनका चरम तीर्थपति सर्वज्ञ महावीर ने निराकरण कर दिया। फलतः इन्द्रभूति के अन्तस्तल में बोधिबीज/सम्यक्त्व का आविर्भाव हुआ और उसने/गौतम ने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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