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गौतम रास : परिशीलन
कारण वे स्वयं कैवल्य से वंचित थे । उनकी स्वदेह से निर्वाणप्राप्ति की जिज्ञासा का शमन करने के लिए महावीर स्वामी ने उन्हें अष्टापद पर्वत पर भरत निर्मित चैत्य में तीर्थंकरों के दर्शन एवं वन्दन करने का आदेश दिया। गौतम स्वामी ने अष्टापद पर्वत की यात्रा की तथा जिनेन्द्र प्रतिमाओं के दर्शन किये । वहाँ १५०० तापसों को प्रतिबोधित करके लौटे, किन्तु अब तक भी वे केवलज्ञान से वंचित थे। इस पर वे उद्विग्न हो उठे। तब महावीर स्वामी ने उन्हें सान्त्वना दी-"गौतम खेद मत करो । अन्ततः हम दोनों एक ही स्वरूप को प्राप्त कर लेंगे-"होस्यां तुल्ला बेउ।"
पावापुरी में भगवान महावीर ने कार्तिकी अमावस्या के दिन निर्वाण प्राप्त क्रिया । किन्तु, उसके पूर्व दिवस ही उन्होंने गौतम को निकटवर्ती ग्राम में देवशर्मा को प्रतिबोध देने के लिए भेज दिया । गौतम वहाँ गये और चतुर्दशी की वह रात उन्होंने वहीं धर्म जागरण में बिताई । प्रातःकाल जब वे लौटने लगे तो देवों के मुख से उन्होंने प्रभ के निर्वाण का संवाद सुना। सुनते ही गौतम हतचेता हो गये। उन्होंने विलाप करते हुए प्रभु को उपालम्भ दिया कि निर्वाण-वेला में स्वयं से अलग भेजकर प्रभु ने उचित नहीं किया। किन्तु, तभी उनकी विचार शृखला बदली। उन्हें वीतराग प्रभु के संकल्प का मर्म समझ में आया कि मेरे राग का उच्छेद करने के लिए ही सर्वज्ञ प्रभु ने मुझे अलग किया था। उनका मोह भंग हुआ, राग-निवृत्ति हुई और तत्क्षण ही वे केवली हो गये । उन्होंने भविक जनों को देशना दी और महावीर प्रभु के प्रथम गणधर के रूप में ६२ वर्ष की पूर्णायु में निर्वाण प्राप्त किया।
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