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गौतम रास : साहित्यिक पर्यालोचन
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पठन-पाठन अत्यन्त श्रद्धा के साथ किया जाता है । कुल ४७ पद्यों का यह लघुकाय रास अपनी विषयवस्तु के कारण ही विशेष आदरणीय है । इसकी कथावस्तु का सार संक्षेप निम्नलिखित है :
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भारत क्षेत्र के मगध देश में श्रेणिक राज्य करते थे । इसी मगध में स्थित गुव्वर ग्राम में वसुभूति नामक ब्राह्मण पण्डित रहते थे । उनकी पत्नी का नाम पृथ्वी था । उनका पुत्र इन्द्रभूति रूपवान्, गुणवान एवं विद्यानिधान था । कर्मकांड में निष्णात इन्द्रभूति के ५०० शिष्य थे । इन्द्रभूति को यह अभिमान था कि विद्वत्ता में उनका समकक्ष कोई नहीं है ।
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एक बार महावीर स्वामी पावापुरी पधारे । वहाँ देवों ने उनके समवसरण की रचना की । जिनेन्द्र प्रभु सिंहासन पर विराजे । विमानों पर चढ़कर प्राये देवों ने उनका जय जयकार किया । अभिमानी इन्द्रभूति को कुतूहल हुआ कि "यह जिनेन्द्र है कौन ?” वे शिष्य-समुदाय के साथ वहाँ पहुँचे तो जिनेन्द्र प्रभु का दिव्य प्रभाव देखकर चमत्कृत हो उठे । महावीर स्वामी ने उन्हें नाम लेकर अपने पास बुलाया और वेद मन्त्रों के प्रमाण देकर उनके हृदय का संशय दूर कर दिया । इन्द्रभूति ने तत्क्षण अपने शिष्यों के साथ प्रव्रज्या / दीक्षा ग्रहण की । उनके बाद वीर विभु ने ग्रनुक्रम से ११ अन्य याज्ञिकों को भी दीक्षा दी तथा उन्हें अपने गणधर पद पर प्रतिष्ठित किया ।
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गौतम स्वामी द्वारा दीक्षित जन कैवल्य का वरण कर लेते थे, किन्तु महावीर स्वामी के प्रति अतिशय अनुराग
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