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गौतम रास : साहित्यिक पर्यालोचन
अलंकार - विन्यास - कवि विनयप्रभ ने अपनी काव्यकृति को स्थान-स्थान पर अलंकारों से मण्डित किया है । अनुप्रास, रूपक तथा उपमा उनके प्रिय अलंकार हैं । कवि द्वारा अलंकारों के विन्यास का जो कौशल प्रदर्शित किया गया है उसके कतिपय उदाहरण प्रस्तुत हैं:
अनुप्रास - अनुप्रास शब्दालंकार है । अपभ्रंश एवं राजस्थानी में इसे "वयणसगाई" कहा जाता है । एक ही वर्ण की अनेक बार आवृत्ति से जो वर्ण- मैत्री का चमत्कार उत्पन्न होता है, उसी को अनुप्रास कहा जाता है । इससे काव्य में एक प्रकार का कर्णप्रिय नाद - सौन्दर्य उत्पन्न होता है । यथा:
(१) विनय विवेक विचार सार गुणगणह मनोहर । ( २ ) नयण वयण कर चरण जणवि पंकज जल पाडिय । ( ३ ) दह दिसि देखइ विबुध वधू ।
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(४) रागज राखइ रंग भरइ । (५) जिम सुर तरुवर सोहइ साखा ।
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उक्त पंक्तियों में अनुप्रास का प्रयोग सहज हुआ है, सायास नहीं ।
रूपक - कवि ने अनेकत्र रूपक के प्रयोग से चमत्कार उत्पन्न किया है । रूपक अलंकार में उपमान तथा उपमेय में अभेद स्थापित किया जाता है । इसके कतिपय उदाहरण यहाँ प्रस्तुत हैं :--
(१) चउदह विज्जा विविह रूव नारी रस लुद्धउ । ( इन्द्रभूति चतुर्दश विद्या रूपी विविध प्रकार की नारियों का रस- लुब्ध था । )
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