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गणधर गौतम : परिशीलन
बैलों को छोड़कर गुरु गौतम का शिष्य बन गया । दीक्षानन्तर गौतम उसको साथ लेकर चले । मार्ग में उसने पूछा-हम कहाँ चल रहे हैं ?
गौतम ने सहज-भाव से कहा-मेरे धर्माचार्य के पास चल रहे हैं।
कृषक-क्या आपके भो कोई गुरु हैं ? गौतम-हाँ, कृषक-पापके गुरु कौन हैं ? गौतम–सर्वज्ञ सर्वदर्शी तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर
मेरे गुरु/धर्माचार्य हैं। कृषक-सोचने लगा-'मेरे गुरु बड़े ज्ञाना हैं, तो इनके गुरु तो बहुत बड़े ज्ञानी होंगे।" प्रसन्नता से गौतम के पीछे-पीछे शीघ्रता से चलने लगा। गुरु के साथ प्रभु के समीप पहुँचा । भगवान को देखते ही वह विचित्र प्रकार की बेचेनो का अनुभव करने लगा और गुरु गौतम से पूछा-सामने जो बैठ हैं ये कौन हैं ?
गौतम ने कहा-ये ही तो मेरे धर्मगुरु जगदुद्धारक भगवान महावीर हैं । खेडूत आवेश में बोल उठा-"यदि यही तुम्हारे धर्मगुरु हैं तो मुझे इनसे कोई काम नहीं और न तुमसे। रखो तुम्हारा यह वेष ।" कहता हुआ मुनिवेष त्याग कर उसी क्षण भाग खड़ा हुआ।
ऐसी अनहोनी और विचित्र घटना को देखकर गौतम तो स्तब्ध हो गए और भगवान से पूछ बैठे
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