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गौतम रास : परिशीलन
गौतम
सत्तावीसवें भव में मरीचि और त्रिपृष्ठ की आत्मा ही महावीर के रूप में अवतरित हुई और कपिल एवं सारथि का जीव ही इस समय में इन्द्रभूति गौतम के रूप में अवतरित हुआ।
पूर्व जन्मों की इस प्रबल स्नेह-परम्परा के कारण ही इस भव में भी गुरु-शिष्य | तीर्थंकर-गणधर के रूप में इन दोनों का पारस्परिक स्नेह भी असीमित/बेजोड़ ही रहा । खेडूत का प्रसंग
जिस प्रकार अनेक भवों से संचित स्नेह-परम्परा वधित होती हुई महावीर और गौतम के प्रशस्त एवं अटूट स्नेह के रूप में प्रतिफलित दिखाई देती है उसी प्रकार वैर-द्वेष की परम्परा भो भवों तक वधित होकर विनाश की कगार पर पहुंचा देती है । इसका उदाहरण है खेडूत।।
भगवान महावीर किसी ग्राम की ओर पधार रहे थे । मार्ग में उन्होंने देखा कि एक खेडूत हालिक खेत में हल चला रहा है और दुर्बल बैलों को नृशंसता के साथ पीट-पीट कर चला रहा है । यह हृदय द्रावक दृश्य देखकर एवं हालिक को सरल जीव समझ कर भगवान ने कहा-हे गौतम ! जाओ और इस किसान को प्रतिबोध दो।
प्रभु की प्राज्ञा प्राप्त कर गौतम खेडूत के पास गये । उसे सरल और सुबोध भाषा में उपदेश दिया । उस उपदेश का खेडूत पर ऐसा जादू हुआ कि वह तत्काल ही खेती और
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