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गणधर गौतम : परिशीलन
है । शरीर पर वस्त्रों की रेखायें भी अंकित हैं (और दाहिना स्कन्ध खुला है) तथा पीछे भामण्डल है। उनके चरणों के पास में एक श्रावक श्राविका का युगल हाथ जोड़ कर स्तुति कर रहा हो, ऐसी बैठी हुई प्राकृतियाँ है।"
इसी प्रकार "खरतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि' पृ. ६४ के अनुसार श्री जिनेश्वरसूरि ने सं. १२८० माघ सुदि १२ श्रीमाल में तथा पृष्ठ ५६ के अनुसार श्री जिनप्रबोधसूरि ने सं. १३३५ वैशाख वदि ६ के दिन वरडिया में श्री गौतम स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठायें की थीं; किन्तु आज ये दोनों प्राचीन मूर्तियाँ किस स्थान पर प्राप्त हैं, अन्वेषणीय है।
___ गौतम स्वामी की अभिलेखों एवं संवतोल्लेख वालो प्रतिमायें या चरण-पादुकायें कहाँ-कहाँ और किन मन्दिरों में आज भो विद्यमान हैं, पूजित हैं ? इसकी विस्तृत जानकारी हमें अद्यावधि प्रकाशित मूर्ति अभिलेखां से सम्बन्धित पुस्तकों से प्राप्त हाता हैं। प्रानुषंगिक एवं उपयोगा हाने से प्रत्येक पुस्तक के लेखांकां के आधार पर तालिका प्रस्तुत को जा रहो है।
- पं. कंचन सागर : शत्रुजय गिरिराज दर्शन
लेखांक
स्थान
| संवत
मूर्ति या चरण
१५५
शत्रुजय, देरो नं. १६६
। देरो नं. ६३०/२/८
१७६४ १५२७
३४६
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