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गणधर गौतम : परिशीलन
(४) बोहित्थ पुत्र सा० वइजलेन मूलदेवादि(५) कुटुम्बसहितेन स्वश्रेयोर्थं स्वकुटुम्बश्रेयोर्थं च ।।
-जैन तीर्थ सर्वसंग्रह भाग १, खण्ड १, पृ. ३६ किन्तु "श्री भीलड़िया पार्श्वनाथ तीर्थ' पृ. १४ एवं “यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन" भाग १, पृ. २२५ पर सं. १३२४ दिया हुआ है, जो कि अशुद्ध एवं भ्रामक है। वस्तुतः यह १३३४ है, जिसका ऐतिहासिक प्रमाण है। श्रीजिनपालोपाध्यायादि संकलित "खतरगच्छ बृहद् गुर्वावलि में जिनप्रबोधसूरि चरित्र में पृष्ठ ५४ पर लिखा है :
"७३. सं० १३३४ मार्ग सुदि १३, रत्नवृष्टिगणिन्याः प्रवर्तिनीपदम् । श्रीभीमपल्ल्यां वैशाख वदि ५, श्रीनेमिनाथश्रीपार्श्वनाथबिम्बयोः, श्रीजिनदत्तसूरिमूर्तेः, श्रीशान्तिनाथदेवगृहध्वजादण्डस्य च सा० राजदेवेन, श्रीगौतमस्वामिमूर्तेः सा० वजयलेन, प्रतिष्ठामहोत्सवः सर्वसमुदायमेलकेन महामहोत्सवेन कारितः।"
अर्थात् सं. १३३४ मार्गसिर सुदि १३ के दिन रत्नवृष्टि गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया गया। तदनन्तर भीमपल्ली नगरी में वैशाख वदि ५ के दिन सेठ राजदेव ने श्री नेमिनाथ स्वामी, श्री पार्श्वनाथ स्वामी, श्री जिनदत्तसूरि की मूर्तियों की प्रतिष्ठा तथा श्री शान्तिनाथ देव के मंदिर पर दण्डध्वजा का आरोपण किया। इसी प्रकार सब समुदायों को बुलाकर महामहोत्सव के साथ सेठ वयजल ने श्री गौतम स्वामी की मूर्ति की प्रतिष्ठा की।
-खरतरगच्छ का इतिहास प्रथम भाग पृ. १२२
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