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गौतम रास : परिशीलन
गुर्वावलि में उल्लिखित सं. १३३४ वैशाख वदि ५ को प्रतिष्ठित श्रीजिनदत्तसूरि की मूर्ति प्राज भी टांगडियावाडा, पाटण के सहस्रफणा पार्श्वनाथ मन्दिर में विद्यमान है । अतः उक्त मूर्ति की प्रतिष्ठा का संवत् १३३४ ही प्रामाणिक मानना चाहिए।
गौतम स्वामी की मूर्ति के लेख में पाठान्तर भी प्राप्त है। श्रीभीलडिया पार्श्वनाथ जी तीर्थ एवं यतीन्द्र विहार दिग्दर्शन में "मूलदेवादिकुटुम्बसहितेन" के स्थान पर "मूलदेवादिभ्रातृसहितेन” मुद्रित है ।
इस मूर्ति की विशिष्टता का परिचय लिखते हुये मुनिश्री विशालविजयजी ने अपनी गुजराती पुस्तक "श्री भीलडिया पार्श्वनाथ जी तीर्थ" के पृ. १३ पर लिखा है, जिसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है
“मूलनायक भगवान के सामने के जीने के पास दाहिनी ओर की दीवार की ताक में श्री गौतम गणधर महाराज की मूर्ति है । दोनों पैर खड़े रखकर, दोनों हाथ जोड़कर वे पाट पर बैठे हुये हैं । यह मूर्ति जोड़े हुये हाथ वाली है अर्थात् उनके दोनों हाथों की चार-चार अंगुलियों तथा अंगूठों के बीच में मुख वस्त्रिका रखी हुई है। उनके कमर के पृष्ठ भाग में रजोहरण
१. मुनि जिनविजयः प्राचीन जैन लेख संग्रह भाग २, लेखांक ५२४ २. जैन तीर्थ सर्व संग्रह के अनुसार मूल गर्भगृह के बाहर के रंगमंडप
के दाहिनी ओर के कोणे में विराजमान है।
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