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गणधर गौतम : परिशीलन
उसी ने मरकर किसान के रूप में जन्म लिया। मुझे देखकर उसके वैराग्नि के पूर्व-संस्कार जाग उठे और मुनि-वेष छोड़कर भाग गया । गौतम ! ऐसी होती है पूर्व-बैर की प्रतिच्छाया और उसके कटुक जहरी फल । वीतराग भाव ही इस वैराग्नि का मारक है।
अष्टापद तोर्थ यात्रा को पृष्ठ-भूमि शाल, महाशाल, गागलि
उत्तराध्ययन सूत्र के द्रमपत्रक नामक दशवें अध्ययन को टीका करते हुए टीकाकारों ने लिखा है :
पृष्ठचम्पा नगरी के राजा थे शाल और युवराज थे महाशाल । दोनों भाई थे । इनकी बहन का यशस्वती, बहनोई का पिठर और भानजे का नाम गागलि था।
भगवान महावीर की देशना सुनकर दोनों भाईयों-शाल महाशाल ने दीक्षा ग्रहण करली थी और कांपिल्यपुर से अपने भानजे गागली को बुलवाकर राजपाट सौंप दिया था । राजा गागली ने अपने माता-पिता को भी पृष्ठचम्पा बुलवा लिया था।
एकदा भगवान चम्पानगरी जा रहे थे। तभी शाल और महाशाल ने स्वजनों को प्रतिबोधित करने के लिये पृष्ठचम्पा जाने की इच्छा व्यक्त की । प्रभु की आज्ञा प्राप्तकर गौतम स्वामी के नेतृत्व में श्रमण शाल और महाशाल पृष्ठचम्पा गये। वहाँ के राजा गागलि और उसके माता-पिता (यशस्वती,
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