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गौतम रास : परिशीलन
गौतम का विलाप और केवलज्ञान-प्राप्ति
गणधर गौतम देवशर्मा को प्रतिबोध देने के बाद वापस पावापुरी की ओर पा रहे थे । प्रभु की आज्ञा पालन करने से इनका रोम-रोम उल्लास से विकसित हो रहा था। जब भी परमात्मा की आज्ञा पालन करने का एवं अबूझ जीव को प्रतिबोध देकर उद्धार करने का अवसर मिलता तो वह दिन उनके लिये प्रानन्दोल्लास से परिपूर्ण बन जाता था।
प्रभु के चरणों में वापस पहुँचने की प्रबल उत्कण्ठा के कारण गौतम तेजी से कदम बढ़ा रहे थे।
इधर प्रभु का निर्वाण महोत्सव मनाने एवं अन्तिम संस्कार के लिये विमानों में बैठकर देवगण ताबडतोब पावापुरी की ओर भागे जा रहे थे । प्राकाश में कोलाहल सा मच गया था। भागते हुए देवताओं के सहस्रों मुखों से, अवरुद्ध कण्ठों से एक ही शब्द निकल रहा था-"आज ज्ञान सूर्य अस्त हो गया है, प्रभु महावीर निर्वाण को प्राप्त हो गए हैं । अन्तिम दर्शन करने शीघ्र चलो।" |
देव-मुखों से निःसृत उक्त प्रलयकारी शब्द गौतम के कानों में पहुँचे । तुमुल कोलाहल के कारण अस्पष्ट ध्वनि को समझ नहीं पाये । कान लगाकर ध्यानपूर्वक सुनने पर समझ में पाया कि “प्रभु का निर्वाण हो गया है।" किन्तु, गौतम को इन शब्दों पर तनिक भी विश्वास नहीं हुआ । वे सोचने लगे-"असम्भव है, कल ही तो प्रभु ने मुझे आज्ञा देकर यहाँ भेजा था । अतः ऐसा तो कभी हो ही नहीं सकता। यह तो पागलों का प्रलाप सा प्रतीत होता है।"
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