________________
गणधर गौतम : परिशीलन
४७
तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए कहा- 'जो साधक स्वयं की आत्मल ब्धि के बल पर अष्टापद पर्वत पर जाकर चैत्यस्थ जिन-बिम्बों की वन्दना कर, एक रात्रि वहाँ निवास करे, तो वह निश्चयतः मोक्ष का अधिकारी बनता है और इसी भव में मोक्ष को प्राप्त करता है।"
बाहर से लौटने पर देवों के मुख से जब उन्होंने उक्त महावीर वाणी को सुना तो उनके चित्त को किंचित् सन्तुष्टि का अनुभव हुआ । “चरम शरीरी हूँ या नहीं' परीक्षण का मार्ग तो मिला, क्यों न परीक्षण करूं ? सर्वज्ञ की वाणी शत-प्रतिशत विशुद्ध स्वर्ण होती है, इसमें शंका को स्थान ही कहाँ ?" अष्टापद तीर्थ की यात्रा
तत्पश्चात् गौतम भगवान के पास आये और अष्टापद तीर्थ यात्रा करने की अनुमति चाही । भगवान ने भी गौतम के मन में स्थित मोक्ष-कामना जानकर और विशेष लाभ का कारण जानकर यात्रा की अनुमति प्रदान की । गौतम हर्षोत्फुल्ल होकर अष्टापद की यात्रा के लिये चले ।
___ शीलांकाचार्य (१०वीं शताब्दी) ने चउप्पन्नमहापुरुष चरियं (पृष्ठ ३२३) के अनुसार भगवान महावीर ने १५०० तापसों को प्रतिबोध देने के लिये गौतम को अष्टापद तीर्थ की यात्रा करने का निर्देश दिया और गौतम जिन-बिम्बों के दर्शनों की उमंग लेकर चल पड़े।
गुरु गौतम आत्म-साधना से प्राप्त चारण लब्धि आदि अनेक लब्धियों के धारक थे, आकस्मिक बल एवं चारणलब्धि (आकाश में गमन करने की शक्ति) से वे वायुवेग की गति से कुछ ही क्षणों में अष्टापद की उपत्यका में पहुँच गये ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org