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गौतम रास : परिशीलन
वज्रस्वामी के जीव को प्रतिबोध
धर्म- जागरण करते समय अनेक देव, असुर और विद्याघर वहाँ आये, उनकी वन्दना की और गौतम के मुख से धर्मदेशना भी सुनकर कृतकृत्य हुए ।
इसी समय शक्र का दिशापालक वैश्रमण देव, ( शीलांकाचार्य के अनुसार गन्धर्वरति नामक विद्याधर ) जिसका जीव भविष्य में दशपूर्वधर वज्र स्वामी बनेगा, तीर्थ की वन्दना करने आया । पुलकित भाव से देव-दर्शन कर गौतम स्वामी के पास आया और भक्ति पूर्वक वन्दन किया । गुरु गौतम के सुगठित, सुदृढ़, सबल एवं हृष्टपुष्ट शरीर को देखकर विचार करने लगा - "कहाँ तो शास्त्र-वर्णित कठोर तपधारी श्रमणों के दुर्बल, कृशकाय ही नहीं, अपितु अस्थि-पंजर का उल्लेख और कहाँ यह हृष्टपुष्ट एवं तेजोधारी श्रमण ! ऐसा सुकुमार शरीर तो देवों का भी नहीं होता ! तो, क्या यह शास्त्रोक्त मुनिधर्म का पालन करता होगा ? या केवल परोपदेशक ही होगा ?"
गुरु गौतम उस देव के मन में उत्पन्न भावों / विचारों को जान गए और उसकी शंका को निर्मूल करने के लिये पुण्डरीक कण्डरीक का जीवन-चरित्र ( ज्ञाता धर्म कथा १६ वां अध्ययन ) सुनाया और उसके माध्यम से बतलाया - महानुभाव ! न तो दुर्बल, अशक्त और निस्तेज शरीर ही मुनित्व का लक्षण बन सकता है और न स्वस्थ, सुदृढ़, हृष्टपुष्ट एवं तेजस्वी शरीर मुनित्व का विरोधी बन सकता है । वास्तविक मुनित्व तो शुभध्यान द्वारा साधना करते हुए संयम यात्रा में ही समाहित / विद्यमान है ।
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