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गौतम रास : परिशीलन
- इधर कौडिन्य, दिन्न (दत्त) और शैवाल नाम के तीन तापस भी 'इसी भव में मोक्ष-प्राप्ति होगी या नहीं' का निश्चय करने हेतु अपने-अपने पांच सौ-पांच सौ तापस शिष्यों के साथ अष्टापद पर्वत पर चढ़ने के लिये क्लिष्ट तप कर रहे थे।
__इनमें से कौडिन्य उपवास के अनन्त र पारणा कर फिर उपवास करता था। पारणा में मूल, कन्द आदि का आहार करता था। वह अष्टापद पर्वत पर चढ़ा अवश्य, किन्तु एक मेखला/सोपान से प्रागे न जा सका था।
दिन्न (दत्त) तापस दो-दो उपवास का तप करता था और पारणा में नीचे पड़े हुए पीले पत्ते खा कर रहता था। वह अष्टापद की दूसरी मेखला तक ही पहुँच पाय, था।
शैवाल तापस तीन-तीन उपवास की तपस्या करता था। पारणा में सूखी शेवाल (सेवार) खा कर रहता था । वह अष्टापद की तीसरी मेखला तक ही चढ़ पाया था। ... तीन सोपान (पगोथियों) से ऊपर चढ़ने की उनमें शक्ति नहीं थी। पर्वत की पाठ मेखलायें थी । अन्तिम/अग्रिम मेखला तक कैसे पहुँचा जाए? इसी उधेड़बुन में वे सभी तापस चिन्तित थे।
- इतने में उन तपस्वी जनों ने गौतम स्वामी को उधर आते देखा । इनकी कान्ति सूर्य के समान तेजोदीप्त थी और शरीर सप्रमाण एवं भरावदार था। मदमस्त हाथी की चाल से चलते हुए पा रहे थे। उन्हें देखकर सभी तापसगण ऊहापोह करने लगे "हम महातपस्वी और दुबले-पतले शरीर वाले भी ऊपर न जा सके, तो यह स्थूल शरीर वाला श्रमण कैसे चढ़ पाएगा?"
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