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गणधर गौतम : परिशीलन
चिरानुवृत्ति है । इस (शरीर के पूर्व) के अनन्तर देवलोक में तदनन्तर मनुष्य भव में स्नेह सम्बन्ध था। अधिक क्या कहूँ।"
भगवान् के इस कथन से स्पष्ट है कि भगवान् के साथ गौतम का अनेक जन्मों/भवों से प्रगाढ़ सम्पर्क रहा था । किन्तु, किस-किस भव में किस रूप में सम्बन्ध | साथ रहा, अस्पष्ट है, आगम-साहित्य मौन है । केवल टीकाकारों, चउप्पन्नमहापुरुष चरियं, गुणचन्द्रीय महावीर चरियं, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र आदि में वर्णित तीन भवों के उल्लेख/वर्णन प्राप्त होते हैं । वे हैं :
१. कपिल, २. सारथि ३. गौतम कपिल :
सम्यक्त्व प्राप्ति के पश्चात् भगवान् महावीर के २७ भवों का वर्णन मिलता है । तीसरे भव में भगवान् का जीव प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के पौत्र एवं प्रथम चक्रवर्ती भरत के पूत्र के रूप में उत्पन्न हआ था। नाम मरीचि था । भगवान ऋषभदेव की देशना से प्रतिबुद्ध होकर दीक्षा ग्रहण की थी। चारित्र धर्म का पालन करने में स्वयं को असमर्थ पाकर त्रिदण्डी/परिव्राजक का वेष अंगीकार कर, भगवान् के समवसरण के बाहर बैठा रहता था और जो भी प्राता था उसे प्रेरित कर भगवान के पास समवसरण में भेज देता था।
एक बार मरीचि बीमार पड़ा । साधु धर्म से च्युत होने के कारण किसी निर्ग्रन्थ ने उसकी सार-सम्भाल नहीं की। इससे मन में खेद हुया और मन में निश्चय किया कि “स्वस्थ होने पर मैं भी किसो को शिष्य बनाऊँगा, जो कि वृद्धावस्था
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