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गणधर गौतम : परिशीलन
यहाँ मूल में प्रागत “दच्छिसि णं गोयमा ! पुव्वसंगतियं” “पूर्व-संगति/पूर्वभव के साथी को देखेगा" शब्द का स्पष्टीकरण कहीं भी प्राप्त नहीं है । इस भव में गौतम स्कन्दक से परिचित नहीं थे, अतः स्पष्ट है कि पूर्व जन्मों से इनका सम्बन्ध/परिचय हो।
रतिलाल दीपचन्द देशाई ने अपनी पुस्तक “गुरु गौतम स्वामी" में वि. सं. १८८६ की लिखित प्रति के आधार से इनके पांच भवों का वर्णन किया है । तदनुसार पांच पूर्व भवों का उल्लेख इस प्रकार है! :--
गौतम स्वामी का जीव स्कन्दक परिव्राजक का जीव १. मंगल श्रेष्ठि
सुधर्मा/सुभद्र २. मत्स्य ३. देव ज्योतिर्माली ४. वेगवान विद्याधर (पति-पत्नी के रूप में) धनमाला
धी सखा ५. देव
देव
देव ६. इन्द्रभूति पिंगलक निर्ग्रन्थ स्कन्दक परिव्राजक
देव
महाशतक श्रावक
उपासकदशा सूत्र के आठवें महाशतक अध्ययन के अनुसार गुरु गौतम संदेशवाहक का कार्य भी सफलता के साथ सम्पन्न करते हैं।
१. देखें :-गुरु गौतम स्वामी
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