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गौतम रास : परिशीलन
? इस प्रसंग का सुन्दरतम वर्णन भगवती सूत्र में प्राप्त होता है | देखिये
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“तत्पश्चात् जातश्राद्ध ( प्रवृत्त हुई श्रद्धा वाले), जात संशय, जात कौतूहल, समुत्पन्न श्रद्धा वाले, समुत्पन्न संशय वाले, समुत्पन्न कुतूहल वाले गौतम अपने स्थान से उठकर खड़े होते हैं । उत्थित होकर जिस ओर श्रमण भगवान महावीर हैं उस ओर आते हैं । उनके निकट ग्राकर प्रभु को उनकी दाहिनी ओर से प्रारम्भ करके तीन बार प्रदक्षिणा करते हैं । फिर वन्दन - नमस्कार करते हैं । नमन कर वे न तो बहुत पास और न बहुत दूर भगवान् के समक्ष विनय से ललाट पर हाथ जोड़े हुए, भगवान् के वचन श्रवण करने की इच्छा से उनकी पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले ।”
और, महावीर " हे गौतम ! " कह कर उनकी जिज्ञासाओं-संशयों, शंकाओं का समाधान करते हैं । गौतम भी अपनी जिज्ञासा का समाधान प्राप्त कर, कृत- कत्य होकर भगवान् के चरणों में पुनः विनयपूर्वक कह उठते हैं--"सेवं भंते ! सेवं भंते ! तहमेयं भंते ! " अर्थात् प्रभो ! आपने जैसा कहा है वह ठीक है, वह सत्य है । मैं उस पर श्रद्धा एवं विश्वास करता हूँ । प्रभु के उत्तर पर श्रद्धा की यह अनुगूंज वस्तुतः प्रश्नोत्तर की एक आदर्श पद्धति है ।
स्वयं चार ज्ञान के धारक ओर अनेक विद्यायां के पारंगत होने पर भी गौतम अपनी जिज्ञासा को शान्त करने, नई-नई बातें जानने और अपनी शंकाओं का निवारण करने के लिये स्वयं के पाण्डित्य / ज्ञान का उपयोग करने के स्थान पर प्रभु महावीर से ही प्रश्न पूछते थे ।
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