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गणधर गौतम : परिशीलन
उत्तर- हाँ, गौतम ! लाघव यावत् अप्रतिबद्धता श्रमण निर्ग्रन्थों के लिये प्रशस्त/श्रेयस्कर है।
प्रश्न-क्या कांक्षा प्रदोष क्षीण होने पर श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तकर अथवा चरम शरीरी होता है ? अथवा पूर्वावस्था में अधिक मोहग्रस्त होकर विहरण करे और फिर संवृत होकर मृत्यु प्राप्त करे तो तत्पश्चात् वह सिद्ध, बुद्ध, मुक्त होता है, यावत् सब दुःखों का अन्त करता है ?
उत्तर-हाँ, गौतम ! कांक्षा-प्रदोष नष्ट हो जाने पर श्रमण-निर्ग्रन्थ यावत् सब दुःखों का अन्त करता है । (भगवती सूत्र १ शतक, ६ उद्देशक, सूत्र-१७, १६)
आगमों में गौतम से सम्बन्धित अंश प्रागम-साहित्य में गणधर गौतम से सम्बन्धित प्रसंग भी बहुलता से प्राप्त होते हैं, उनमें से कतिपय संस्मरणीय प्रसंग यहाँ प्रस्तुत हैं।
प्रानन्द श्रावक:
प्रभु महावीर के तीर्थ के गणाधिपति एवं सहस्राधिक शिष्यों के गुरु होते हुए भो गणधर गौतम गाचरी/भिक्षा के लिये स्वय जाते थे । एक समय का प्रसंग है :
प्रभु वाणिज्य ग्राम पधारे । तीसरे प्रहर में भगवान् की प्राज्ञा लेकर गौतम भिक्षा के लिये निकले और गवेषणा करते हुए गाथापति आनन्द श्रावक के घर पहुँचे । आनन्द श्रावक भगवान् महावीर का प्रथम श्रावक था । उपासक के बारह
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