________________
३०
गौतम रास : परिशीलन
दोनों आचार्यों के शिष्यवृन्द जब भिक्षाचर्या आदि के लिये गमनागमन करते थे, तब एक दूसरे के वेष, क्रियाकलाप
और प्राचार-भिन्नता को देखते हुए उनके मन में विचार उत्पन्न हुए कि 'हम दोनों के धर्मप्रवर्तकों तीर्थंकरों का उद्देश्य एक ही होने पर भी अन्तर क्यों है ? हमारे तीर्थंकर महावीर ने पांच महाव्रत बताए हैं जबकि इनके तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने चतुर्याम | चार महाव्रत ही । ओर, इनके और हमारे वेष में अन्तर क्यों हैं ?' दोनों महापुरुषों ने शिष्यों के शंकाकुल मानस को पढ़ा और परस्पर मिलने का विचार किया । भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा को ज्येष्ठ कुल मानकर विनय-मर्यादा के ज्ञाता गणधर गौतम शिष्यों के साथ तिन्दुक वन पधारे । गौतम गणधर को सपरिवार प्राता देखकर श्रमण केशीकुमार कुछ कदम सन्मुख गये और सम्यक् प्रकार से उनके अनुरूप योग्य प्रादर-सत्कार देकर, उन्हें साथ लेकर आए तथा अपने निकट ही बैठने के लिये आसन प्रदान किया । आसनों पर बैठे हुए दोनों महापुरुष चन्द्र-सूर्य के समान प्रभासम्पन्न दिखाई दे रहे थे । उन दोनों के मिलन को देखने, वार्तालाप सुनने हजारों लोग इकट्ठे हो गए थे। कुशल-क्षेम प्रश्न के अनन्तर दोनों का वार्तालाप प्रश्नोत्तरों के माध्यम से प्रारम्भ हुआ। केशी कुमार जिज्ञासापूर्वक प्रश्न करते और गौतम "धर्मतत्त्व की समीक्षा प्रज्ञा करती है न कि मात्र परम्परा' का आदर्श सन्मुख रखते हुए समाधान करते जाते। दोनों के मध्य निम्नांकित १२ प्रश्नोत्तर हुए :--
१. चतुर्याम धर्म और पंच महाव्रत धर्म में अन्तर का कारण ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org